पर्वत प्रदेश में पावस कविता में पर्वत द्वारा प्रतिबिंब तालाब में देखना पर्वत मनोभावों का स्पष्ट करना चाहता है
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➲ “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ पावस प्रदेश में प्रतिबिंबित पहाड़ के दृश्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वर्षा ऋतु में पर्वत के चारों तरफ के तालाब जल से भर गए हैं। तालाबों में जल लबालब बह रहा है और वह जल इतना स्वच्छ एवं निर्मल है कि उस जल में पहाड़ का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। तालाब के जल एक विशालकाय दर्पण का काम करने लगा है। उस जल रूपी दर्पण में उस विशालकाय पहाड़ के प्रतिबिंब को देखकर ऐसा लगता है कि मानो जैसे कि करधनी के आकार वाला कोई पहाड़ अपने हजारों फूल रूपी नयनों से तालाब रूपी दर्पण में अपने प्रतिबिंब को निहार रहा हो। पहाड़ पर उगने वाले असंख्य फूल उसकी आँखों का काम कर रहे हैं और उन फूलों सहित उस विशालकाय पर्वत का दर्पण रूपी में तालाब में दिखायी देने वाला प्रतिबिंब देखकर ऐसा लगता है, कि जैसे पर्वत की एक जोड़ी आँखें नही बल्कि फूल रूपी हजारों आँखें हैं, और उन हजारों आँखों से पर्वत उस विशालकाय तालाबी रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहार रहा हो।
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कविता में कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ पावस प्रदेश में प्रतिबिंबित पहाड़ के दृश्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वर्षा ऋतु में पर्वत के चारों तरफ के तालाब जल से भर गए हैं। तालाबों में जल लबालब बह रहा है और वह जल इतना स्वच्छ एवं निर्मल है कि उस जल में पहाड़ का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। तालाब के जल एक विशालकाय दर्पण का काम करने लगा है। उस जल रूपी दर्पण में उस विशालकाय पहाड़ के प्रतिबिंब को देखकर ऐसा लगता है कि मानो जैसे कि करधनी के आकार वाला कोई पहाड़ अपने हजारों फूल रूपी नयनों से तालाब रूपी दर्पण में अपने प्रतिबिंब को निहार रहा हो। पहाड़ पर उगने वाले असंख्य फूल उसकी आँखों का काम कर रहे हैं और उन फूलों सहित उस विशालकाय पर्वत का दर्पण रूपी में तालाब में दिखायी देने वाला प्रतिबिंब देखकर ऐसा लगता है, कि जैसे पर्वत की एक जोड़ी आँखें नही बल्कि फूल रूपी हजारों आँखें हैं, और उन हजारों आँखों से पर्वत उस विशालकाय तालाबी रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहार रहा हो।