पर्यावरण के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
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मृदा-प्रदूषण
वर्षा से भूमि की संरचना का बिगड़ना, दिन-प्रतिदिन उर्वरकों का प्रयोग, चूहे मारने की दवा आदि का प्रयोग तथा फसलों को बीमारी से बचाने के लिये दवा का छिड़काव भूमि की उर्वरकता को नष्ट कर देता है तथा ऐसा प्रदूषण मृदा प्रदूषण कहलाता है।
वायु प्रदूषण
मानव को प्रकृति प्रदत्त एक नि:शुल्क उपहार मिला है और वह है- वायु। यह उपहार सभी जीवों का आधार है। मानव बिना भोजन एवं बिना जल के कुछ समय भले ही व्यतीत कर ले, बिना वायु के वह दस मिनट भी जीवित नहीं रह सकता। यह अत्यंत चिन्ता का विषय है कि प्रकृति प्रदत्त जीवनदायिनी वायु लगातार जहरीली होती जा रही है। शहरों का असीमित विस्तार, बढ़ता औद्योगीकरण, परिवहन के साधनों में लगातार वृद्धि तथा विलासिता की वस्तुएं (जैसे- एयरकन्डीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि) वायु प्रदूषण को लगातार बढ़ावा दे रही हैं।
जल प्रदूषण
जल में ठोस कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, रेडियोएक्टिव तत्व, उद्योगों का कचरा एवं सीवेज से निकला हुआ पानी मिलने से जल प्रदूषित हो जाता है।
ध्वनि प्रदूषण
अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को ‘डेसिबल इकाई’ में मापा जाता है। शून्य डेसिबल, ध्वनि की तीव्रता का वह स्तर है जहाँ से ध्वनि सुनाई देने लगती है। फुसफुसाहट में बोलने पर ध्वनि की तीव्रता 30 डेसिबल होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार 40 से 50 डेसिबिल तक की ध्वनि मनुष्य के सहने लायक होती है। उससे अधिक की तीव्रता की ध्वनि मनुष्य के लिये हानिकारक होती है।
रेडियो एक्टिव प्रदूषण
नाभिकीय परमाणु परीक्षणों के फलस्वरूप कई रेडियो एक्टिव तत्व जैसे- यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम तथा रेडियो एक्टिव किरणें जैसे- अल्फा, बीटा व गामा किरणें वातावरण में प्रवेश करके रेडियो धर्मी प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।