पर्यावरण प्रदूषण उपसहार
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Explanation:
प्रदूषण आज के समय का एक सबसे बड़ा मुद्दा है जिसके बारे में सभी को पता होता है। पर्यावरण प्रदूषण हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। प्रदूषण की वजह से हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण चाहे किसी भी तरह का हो लेकिन वह हमारे और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है।
Answer:
पैरी नदी एवं सोंढूर नदी का पांडुका के 15 किमी दूर गरियाबंद मार्ग पर मालगाँव मुहैरा के पास संगम हुआ है और दोनों नदियों का जलकोष व्यापक हो जाता है। पांडुका से 3 किमी दूर ग्राम कुटेना से सिरकट्टी आश्रम के पास पैरी नदी एवं सोंढूर नदी के तट पर कठोर पत्थरों की चट्टानों को तोड़कर यहाँ एक बन्दरगाह बनाया गया था। सिरकट्टी आश्रम के पास नदी के बाँयीं ओर तट पर जल-परिवहन की नौकाओं को खड़ा करने के लिए समानान्तर दूरी पर पंक्तिबद्ध गोदियाँ बनाई गई थीं। इन गोदियों का निर्माण कुशल शिल्पकारों से कराया गया था। जल-परिवहन की दृष्टि से इस प्रकार की गोदियाँ अन्यत्र देखने में नहीं आतीं। ये गोदियाँ तीन भागों में निर्मित थीं जो 5 मीटर से 6.60 मीटर चौड़ी तथा 5-6 मीटर गहरी थीं। वर्तमान में ये गोदियाँ नदियों की रेत में पट चुकी हैं। जहाँ नौकायें खड़ी हुआ करती थीं, वहाँ पर बहुत बड़े समतल प्लेटफार्म भी बनाये गये थे। सोंढूर और पैरी नदी के संगम स्थल पर मालगाँव में व्यापार के लिए माल का संग्रहण किया जाता था और इसी आधार पर इस गाँव का नाम मालगाँव पड़ गया था। महानदी के जल-मार्ग से कलकत्ता तथा अन्य स्थानों से वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। पू्र्वी समुद्र तट पर ‘कोसल बंदरगाह’ नामक एक विख्यात बन्दरगाह भी था।
इस तरह से छत्तीसगढ़ की महानदी ने अपनी सहायक नदियों के साथ न केवल अपने तट पर मानव-सभ्यता, नगरी सभ्यता, देव-संस्कृति, कृषि-संस्कृति एवं पुरातात्विक संस्कृति को हो सिंचित किया है, बल्कि अपने व्यापक जल-कोष से जल-मार्ग देकर छत्तीसगढ़ को अर्थ-सम्पदा एवं व्यापारिक समृद्धि का विकास भी किया है।
पैरी नदी के उद्गम स्थल से निरंतर पानी रिसता रहता है और इस पानी से पहाड़ी के नीचे दोमट मिट्टी के खेतों में धान की अच्छी फसल होती है। सोंढूर नदी को पूर्व में सुन्दराभूति नदी के नाम से जाना जाता था। पैरी नदी का जल-प्रवाह मध्यम होने से इसका जल निर्मल है और सोंढूर नदी का जल-प्रवाह तीव्र होने के कारण इसका जल मटमैला दिखलाई पड़ता है। यहाँ तक कि वर्षा ऋतु में इन दोनों नदियों की अलग-अलग रंग की धारायें स्पष्ट दिखलाई पड़ती हैं।
इस तरह से छत्तीसगढ़ की नदियाँ छत्तीसगढ़ के लिए वरदान की तरह हैं और इनके अवदानों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यदि महानदी छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा है तो इन्द्रावती आदिवासी संस्कृति एवं जीवन की भाग्य विधात्री है। छ्त्तीसगढ़ को धान का कटोरा बनाने वाली यहाँ की विभिन्न नदियाँ ही हैं। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में नर्मदा नदी की सहायक ‘बंजर’ नदी भी प्रवाहित हो रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ को यहाँ की नदियों का बहुमूल्य अवदान प्राप्त है।
यदि हम देखें तो हमें ज्ञात होगा कि छत्तीसगढ़ की महानदी का जल-संग्रहण क्षेत्र लगभग 1,41,600 वर्ग किमी है और यह नदी अपनी सहायक नदियों पैरी, जोंक, शिवनाथ, हसदो आदि के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के एक व्यापक कृषि-क्षेत्र को सिंचित कर रही है, किन्तु दुख है कि आज महानदी अनेक प्रकार के प्रदूषणों से भरती जा रही है। केन्द्रीय प्रदूषण निवारण मंडल की ओर से सन् 1998-99 में जो अध्ययन हुआ उसके अनुसार अन्य नदियों की ही तरह महानदी में भी आक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। अपशिष्ट तत्वों के कारण पानी प्रदूषित हो रहा है। भागीरथ नामक पत्रिका के जनवरी से मार्च 2001 में देश की नदियों के जल-स्तर में गिरावट के आँकड़े दिये हैं, इनमें छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर एवं सरगुजा में प्रवाहित होने वाली नदियों के बारे में बताया गया है कि इन नदियों में जल स्तर की गिरावट की दृष्टि से 4 मीटर के लगभग गिरावट आयी है। यह गिरावट भावी संकट का संकेत है। नदियों के जल-प्रवाह के रचनात्मक उपयोग के लिए यहाँ की नदियों में बाँध बनाये गये हैं। छत्तीसगढ़ के उल्लेखनीय बाँधों में रविशंकर-सागर, हसदो-बाँगो, कोडार, महानदी, अरपा-पेरी आदि प्रमुख बाँध हैं। इन बाँधों की सहायता से छत्तीसगढ़ का एक बड़ा भू भाग सिंचित हो रहा है। शेष भाग वर्षा पर अवलम्बित है। छत्तीसगढ़ में सहायक नहरों एवं छोटे-छोटे बाँधों के प्रति शासन में उदासीनता ही बनी हुई है, जो छत्तीसगढ़ के कृषि विकास के लिए उचित नहीं है।
अब छत्तीसगढ़ राज्य एक पृथक राज्य बन गया है। अतः इसे अब अपनी पृथक जल-नीति बनानी चाहिए, क्योंकि छ्त्तीसगढ़ में जल-सम्पदा के रूप में नदियों का जाल ही बिछा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 मार्च, 1993 को विश्व जल दिवस मनाने का निर्णय लिया था, किन्तु इस संबंध में हमारा देश पहले से ही सजग था और हमारे देश भारत ने सन् 1986 में ही जल दिवस मनाने का निर्णय ले लिया था, तो फिर नदियों से गुम्फित छत्तीसगढ़ को इस संबंध में क्यों चुप बैठना चाहिए? जल-नीति के मामले में छत्तीसगढ़ को तो और भी अधिक सजग होना चाहिए। और एक ठोस व कारगर जल-नीति बनाना चाहिए, क्योंकि छ्त्तीसगढ़ राज्य के अधिकांश लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि-कर्म ही है और अधिकांश स्त्री-पुरुष कृषि-कर्म में ही नियोजित हैं और उनके जीवन का आधार कृषि है।
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