पर्यावरण संरक्षण अधिनियम एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के बीच क्या-क्या अंतर हो सकते हैं
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पर्यावरणीय कानून (ENVIRONMENTAL LAWS)
देश के सारे कानूनों की उत्पत्ति पर्यावरण की समस्याओं से जुड़ी हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रभावशाली कानूनों व नियमों का होना आवश्यक है, नहीं तो, बढ़ती जनसंख्या की अधिक साधनों की आवश्यकता पर्यावरण पर बहुत भार डाल देगी। इन नियमों को लागू करना दूसरा मुख्य पहलू है। पर्यावरण को और अधिक अवक्रमित होने (हानि) एवं प्रदूषण से बचाने के लिये इन कानूनों-नियमों को बलपूर्वक तथा प्रभावशाली ढंग से लागू करना अति आवश्यक है।
23.1.1 कानून (विधान) की आवश्यकता
पिछले समय (हाल के समय) में ही विभिन्न प्रकार की पर्यावरण संबंधी समस्याएँ उभरी हैं जो कि मानवीय सुख-समृद्धि के लिये खतरा बन गई हैं। पर्यावरणीय समस्याओं का एक जरूरी पहलू यह है कि उनका प्रभाव केवल स्रोत के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि दूर-दूर तक के क्षेत्रों तक फैल जाता है।
पर्यावरण के दुरुपयोग और अवक्रमण से बचाव के लिये प्रभावशाली कानूनों की आवश्यकता है। दुष्ट लोगों, जंगल के माफिया ग्रुप, शिकारियों, प्रदूषकों एवं पर्यावरणीय संसाधनों के अत्यधिक शोषण से बचाव के लिये, प्रभावशाली कानूनों की आवश्यकता है। प्रदूषण एक ऐसा कारक है जो कि राजनैतिक दीवारों और कानूनी दायरों की परवाह नहीं करता। अतः हम यह कह सकते हैं कि पर्यावरणीय समस्याएँ मूल रूप से वैश्विक हैं, सिर्फ स्थानीय नहीं हैं। अतः ऐसी समस्याओं के निवारण के लिये पर्यावरण संबंधी कानून न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी जरूरी है।
पाठगत प्रश्न 23.1
1. पर्यावरण-संबंधी समस्याओं को सुलझाने के लिये कानूनों की क्यों आवश्यकता है?
2. कानूनों का लागूकरण क्यों आवश्यक है?
23.2 राष्ट्रीय कानून (NATIONAL LAWS)
भारतीय संविधान में संशोधनों के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर, पर्यावरण के सुधार एवं बेहतरी के लिये कड़े प्रयास किए गए हैं- आरम्भिक काल में हमारे संविधान में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये कोई प्रावधान नहीं था। परन्तु 1972 में स्टॉकहोम में हुए संयुक्त राष्ट्र की मानवीय पर्यावरण से संबंधित कॉन्फ़्रेंस के पश्चात, भारतीय संविधान में संशोधन किया गया और उसमें पर्यावरण के संरक्षण को एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया।
हालाँकि भारत में 1879 में हाथियों के संरक्षण का कानून और सन 1929 में वन संरक्षण का कानून आया था, परन्तु पर्यावरण संबंधी कानून 1972 में ही आया। यह 1971 की वन्य जीवन संरक्षण एक्ट से प्रेरित था। जैसा कि हम सभी जानते हैं, भारत को विश्व के बाहर बहुत अधिक विविधता वाले देशों में गिना जाता है। अभी भी ऐसी कई जन्तु प्रजातियाँ हैं, जिनकी पहचान अभी तक नहीं हुई है। जैविक विविधता का कृषि, औषधि और उद्योग के साथ सीधे उपभोग का संबंध है। इसके अलावा वह देश की संपदा भी है। हमारे संविधान में जैवविविधता के संरक्षण का प्रावधान है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51ए (51 A) में 42वां संशोधन, पर्यावरण के संरक्षण एवं उसमें सुधार को एक मूल कर्तव्य का रूप देता है।
‘‘यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक वातावरण जिसमें वनों, झीलों, नदियाँ और वन्य जीवन जैसी प्राकृतिक संपदा सम्मिलित है, का संरक्षण करे व जीवित प्राणियों के लिये मन में करुणा रखे।’’
पर्यावरण के संरक्षण व बेहतरी के लिये केन्द्र द्वारा प्रदेशों को एक निर्देश जारी किया गया है। जिसे राजकीय नीति निर्देश आधार का दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 48-ए (48 A) स्पष्ट करता है- ‘‘यह राज्य का कर्तव्य है कि वह न केवल पर्यावरण का बचाव व सुधार करे बल्कि देश के वनों और वन्य जीवन का भी संरक्षण करे।’’
भारत में सन 1980 में देश में स्वस्थ पर्यावरण के विकास के लिये पर्यावरण विभाग की स्थापना हुई थी। यही विभाग, आगे चलकर, सन 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय कहलाया। इस मंत्रालय की मुख्य जिम्मेदारी पर्यावरण संबंधी कानूनों और नीतियों का संचालन व लागूकरण है।
हमारे संविधान के प्रावधान कई कानूनों का सहारा लेते हैं, जिन्हें हम एक्ट और नियमों के नाम से जानते हैं। हमारे अधिकांश पर्यावरण-संबंधी कानून व नियम विधानसभा व राज्य सभाओं द्वारा निर्मित कानून हैं। ये एक्ट प्रायः अपनी कार्य शक्ति को नियंत्रक एजेंसियों को प्रसारित करते हैं, जोकि उनके लागूकरण की तैयारी करती है। भोपाल गैस दुर्घटना के पश्चात पर्यावरण संरक्षण कानून (Environment Protection Act, EPA) सन 1986 में तैयार होकर सामने आया।
इसे एक मुख्य कानून माना जा सकता है क्योंकि ये वर्तमान कानूनों की कई कमियों को पूरा करता है। इसके पश्चात तो विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं को संबोधित करने के लिये कई पर्यावरणीय कानूनों का विकास हुआ है। उदाहरण के लिये अभी हाल के वर्षों में ही सी.एन.जी. का प्रयोग, दिल्ली प्रदेश में सार्वजनिक यातायात के वाहनों के लिये अनिवार्य कर दिया गया है। इसके फलस्वरूप दिल्ली के वायु प्रदूषण की मात्रा कम हो गई है।