पर्यावरण संतुलन में वनों का क्या योगदान है ?
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परिवर्तित परिवेश में प्रदूषण एवं जलवायु में तेजी से परिर्वतन की दिशा में पर्यावरण संतुलन में वनों एवं वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए प्राचीन काल से ही भारतीय जीवन में वृक्षों एवं वन संपदाओं को विशिष्ट स्थान दिया गया है। मानव सप्तधिकार जग निगरानी समिति द्वारा रविवार को यहां कम्यूनिटी हाल में आयोजित जैव विविधता जन जागरुकता एवं पर्यावरण जागरुकता विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व बेसिक शिक्षाधिकारी हृदय शंकर यादव ने उक्त उद्गार व्यक्त किए। इसके पूर्व मुख्य अतिथि ने संजय कुमार चतुर्वेदी एवं श्रीमती सुनीता के साथ दीप प्रज्च्वलित कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया। कहाकि जै व विविधता देश की प्राकृतिक संपदा है जिसका उपयोग सर्वागीण विकास में अति आवश्यक है। जनसंख्या में भारी वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों में निरतंर कमी हो रही है। ऐसी स्थिति में जैव विविधता का संरक्षण कैसे और किस प्रकार किया जाए यह एक गंभीर विषय बन चुका है। इसे रोकने के लिए पेड़-पौधों व जीव जंतुओं को बचाना आवश्यक है। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संजय कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि पौधा लगाने को पुत्र प्राप्ति जैसा पुण्य कर्म माना गया है। शम्भु नाथ सिंह, सच्चिदानंद तिवारी, डा.परशुराम सिंह, इकबाल अहमद कुरैशी, शैलेश सिंह, पुष्पा देवी, दीनानाथ, अनूप गुप्ता, प्रभुनाथ राम, बब्बन राम, सुभाष बरनवाल तथा संत फक्कड़ बाबा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष प्रेमचंद्र व संचालन श्रीमती सुनीता ने किया।