paragraph on kachre ka sahi vargikaran
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देवनार में पिछले दिनों लगी आग ने कचरे की समस्या को चर्चा में ला दिया। नेताओं के दौरे हुए, डंपिंग ग्राउंड बंद करने की मांग जोर पकड़ने लगी। हालांकि, वर्षों से हमारी गैरजिम्मेदारी और बीएमसी के अधूरे नियोजन ने कचरे की समस्या को विकराल रूप में खड़ा कर दिया। घरों में सामान्य वर्गीकरण, उन पर प्रक्रिया ही डंपिंग ग्राउंड की समस्या का सबसे आसान उपाय है। जानकारों की मदद से हमने कचरे की समस्या की जड़े टटोलना शुरू किया, तो तमाम नए तथ्य सामने आए।
वर्गीकरण से बन सकती है बात
कचरा वर्गीकरण करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। ऐसा कर डंपिंग ग्राउंड में केवल आवश्यक कचरे को ही भेजा जाएगा। वहीं, गीले कचरे की प्रक्रिया सोसायटी स्तर पर ही हो जाएगी। बायो-मेडिकल, कंस्ट्रक्शन के मलबे को अलग से प्रक्रिया के लिए निकाला जा सकता है, जिससे डंपिंग ग्राउंड में घातक स्थिति नहीं पैदा होती और ग्राउंड के कचरे के निस्तारण के लिए सही प्रक्रिया पर काम करने में आसानी होती। जी/ उत्तर सिटीजन फोरम के अशोक रावत कहते हैं कि घरों के स्तर से इस समस्या को आसानी से हल किया जा सकता है। लोग खुद ही अलग-अलग डब्बे में जमा कर सकते हैं। गीले कचरे को घर में या सोसायटी के स्तर पर प्रक्रिया की जा सकती है। अन्यथा, बीएमसी को भी इसे अलग-अलग कर सुपुर्द किया जा सकता है। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर कचरा पैदा करने वाले होटलों, क्लबों आदि के अंदर ही इसकी प्रक्रिया का संयंत्र लगाया जाना चाहिए।
डंपिंग बन चुकी है चुनौती
सालों से सूखे, गीले कचरे को इकट्ठा रूप से मुंबई के 3 डंपिंग ग्राउंड (देवनार, मुलुंड, कांजुरमार्ग) में डंप किया जाता है। इससे डंपिंग ग्राउंड में कचरे का ऊंचा अंबार लगता चला गया और समस्या बढ़ गई। कचरे से निकलने वाली खतरनाक गैसें (मीथेन समेत अन्य) जब ऑक्सीजन के संपर्क में आती हैं, तो इसमें आग लगना तय है। कई बार यह आग व्यापक रूप ले लेती है, जिससे निकला धुआं प्रदूषण के स्तर को भयंकर रूप से बढ़ा देता है। देवनार डंपिंग ग्राउंड के पास रहने वाले मिराज अंसारी बताते हैं कि आग तो सालों-साल से लगती आ रही है, लेकिन इस बार इसका धुंआ दूर तक फैला, जिससे समूचा एरिया प्रभावित हुआ और इसने सभी का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि देवनार डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहने वाले कितनी तकलीफों में और कब से जीवन-यापन कर रहे हैं, यह समझना या समझाना मुश्किल है। इस क्षेत्र के लोग कई बार प्रदूषण के चलते गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जिससे वे चर्चा के केंद्र में आते हैं। जानकारों के मुताबिक डंपिंग ग्राउंड की क्षमता सालों पहले ही खत्म हो चुकी है। हालांकि, प्रशासन के सामने कचरे की डंपिंग का दूसरा विकल्प न होने की वजह से इन ग्राउंड्स में ही कचरा भरना पड़ता है।
नए नियम से आसान होगी राह
केंद्र सरकार ने हाल ही में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नए नियम जारी किए हैं। जानकारों की मानें, तो इससे निकट भविष्य में कचरे की समस्या से निपटने में आसानी होगी। नियम के कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-
1. नए नियम म्युनिसिपल एरिया के बाहर भी लागू होंगे, अब तक केवल म्युनिसिपल एरिया में ही इसे लागू किया जाता था
3. कचरे का उत्पादन करने वाले पर उसे गीला (बायोडीग्रेडेबल), सूखा (प्लासटिक, पेपर, धातु, लकड़ी इत्यादि) और खतरनाक घरेलू कचरे (डायपर, नैपकीन, मैट इत्यादि) को अलग कर उसे बीएमसी को सौंपने की जिम्मेदारी होगी।
4. राज्य सरकारें, सेल्फ हेल्प ग्रुप की मदद से कचरा चुनने वालों, कबाड़ी वालों को संगठित क्षेत्र के तहत लाएं।
5. कोई भी व्यक्ति, सड़क, नाले या खुली जगह पर कचरा फेंक या जला नहीं सकते हैं।
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अक्सर देखने में आता है कि घर का कचरा, जिसमें की लोहे के डिब्बे, कागज, प्लास्टिक, शीशे के टुकड़े जैसे इनऑर्गेनिक पदार्थ या बचा हुआ खाना, जानवरों की हड्डियाँ, सब्जी के छिलके इत्यादि ऐसे ही खुले स्थानों पर फेंक दिए जाते हैं। जिन क्षेत्रों में लोग दुधारू पशु, मुर्गी या अन्य जानवर पालते हैं। वहाँ इन जानवरों का मल भी वातावरण को प्रदूषित करता है।
कूड़े-कचरे का सही प्रकार से निष्पादन न होने से पर्यावरण गन्दा होता है। दुर्गन्ध फैलने के अतिरिक्त इसमें कीटाणु भी पनपते हैं जो कि विभिन्न रोगों के कारक होते हैं। ऐसे स्थानों पर मच्छर, मक्खियाँ और चूहे भी पनपते हैं। अतः घर में, घर के बाहर या बस्तियों में पड़ा कचरा समुदाय के स्वास्थ्य के लिए भयंकर दुष्परिणाम पैदा कर सकता है।
ग्रामीण क्षेत्र में कचरा निष्पादन
गाँव में नगरपालिका की सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः कूड़े-कचरे का छोटे स्तर पर निष्पादन के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैंः
1. कम्पोस्टिंग
2. वर्मीकल्चर
(क) कम्पोस्टिंग (खाद बनाना): यह वह प्रक्रिया है जिससे घरेलू कचरा जैसे घास, पत्तियाँ, बचा खाना, गोबर वगैरह का प्रयोग खाद बनाने में किया जाता है।
गोबर और कूड़े-कचरे की खाद तैयार करने के लिए एक गड्ढा खोदें। गड्ढे का आकार कूड़े की मात्रा तथा उपलब्ध स्थान के अनुरूप हो।
आमतौर पर एक छोटे ग्रामीण परिवार के लिए 1 मीटर लम्बा और 1 मीटर चौड़ा और 0.8 मीटर गहरा गड्ढा खोदना चाहिए। गड्ढे का ऊपरी हिस्सा जमीन के स्तर से डेढ़ या दो फुट ऊँचा रखें। ऐसा करने से बारिश का पानी अन्दर नहीं जाएगा।
गड्ढे में घरेलू कृषि, कूड़ा-कचरा एवं गोबर भूमि में गाड़ देना होता है। खाद करीब छह महीने के अन्दर तैयार हो जाती है। गड्ढे से खाद निकाल कर ढेर करके मिट्टी से ढक देनी चाहिए। इसे खेती के उपयोग में ला सकते हैं।
कम्पोस्टिंग के फायदेः
1. खेत में पाये जाने वाले फालतू घास-फूस के बीज गर्मी के कारण नष्ट हो जाते हैं।
2. कूड़े-कचरे से प्रदूषण रूकता है।
3. कचरे से अच्छी खाद तैयार हो जाती है जोकि खेत की उपज बढ़ाने में सहायक है।
(ख) वर्मीकल्चरः यह कचरे से खाद बनाने की एक प्रक्रिया है। इसमें केचुओं द्वारा जैविक विघटन कचरा जैसे सब्जी का छिलका, पत्तियाँ, घास, बचा हुआ खाना इत्यादि से खाद तैयार की जाती है।
एक लकड़ी के बक्से या मिट्टी के गड्ढे में एक परत जैविक विघटन कचरे की परत बिछाई जाती है और उसके ऊपर कुछ केचुएँ छोड़ देते हैं। उसके ऊपर कचरा डाल दिया जाता है और गीलापन बरकरार रखने के लिए पानी का छिड़काव किया जाता है। कुछ समय के उपरान्त यह बहुत ही अच्छी खाद के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर, घरेलू कचरा तथा कृषि कचरे का पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। अतः आवश्यक है कि ग्रामवासियों को कचरे से खाद उत्पन्न करने के बारे में जानकारी दी जाए और गाँव का प्रदूषण रोका जाए। साथ में कचरे का भी सदुपयोग हो जाए।
शहरी क्षेत्र में कचरा निपटानः
शहरों में कचरा निपटान की उचित व्यवस्था नगरपालिका द्वारा की जाती है। यदि यह कार्य सुचारू रूप से नहीं चल रहा है तो नगरपालिका को सूचित करें और उन पर दबाव डालें कि घोषित स्थल से मोहल्ले का कचरा नगरपालिका एकत्रण केन्द्र स्थानांतरण करें जहाँ से उसका उचित निपटान हो सके।
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