paragraph on the Bal majduri Ek Abhishap
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बाल मजदूरी’ हमारे समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। यद्यपि पिछले दशक से बाल मजदूरी (बीपसक संइवनत) के विरूद्ध आवाज उठा रही है और ’बचपन बचाओ’ आंदोलन अत्यंत सक्रियता से चल रहा है, पर फिर भी यह समस्या इतनी छोटी और सरल नहीं, जितनी यह प्रतीत होती है। आइए हम इसके स्वरूप एवं इससे होने वाली हानियों के बारे में चर्चा कर लें।
हम देखते हैं बच्चों को घरेलू नौकर के रूप् में रखा जाता है। वहाँ उनका भरपूर शोषण किया जाता है। उन्हें शिक्षा से वंचित किया जाता है तथा नाम-मात्र का वेतन देकर सीमा से अधिक श्रम कराया जाता है। इसके साथ-साथ उन्हें शारीरिक रूप् से दंडित भी किया जाता है। इसी प्रकार कल-कारखानों में बाल श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है। वहाँ उन्हें अत्यंत शोचनीय वतावरण में काम करने को विवश किया जाता है। ग़लीचे बुनना, चुड़ियाँ बनाने, आतिशबाजी का सामान बनाने अदि श्रमसाध्य कार्यों में बाल श्रमिकों का जमकर दोहन किया जाता है। उन्हें अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। होटल और ढाबों में बच्चों को काम करते देखा जा सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि लोग बच्चों से मजदूरी क्यों करवाते हैं? ये बच्चे मजदूरी करते क्यों हैं? पहले प्रश्न का उत्तर है कि बच्चों को कम मजदूरी देनी पड़ती है। एक मजदूर की तनख्वाह में दो बाल श्रमिक रखे जाते हैं। बालक कोई समस्या भी पैदा नहीं करते और चुपचाप काम करते हैं। अब प्रश्न उठता है कि ये बालक मजदूरी करते क्यों हैं? इनके माँ-बाप की आय इतनी नहीं है कि ये घर का पूरा खर्च उठा सकें। उनके लिए बच्चे कमाई का साधन हैं। वे शिक्षा का महत्व नहीं समझते अतः वे बच्चों को स्कूल भेजने की अपेक्षा काम पर भेजने में ज्यादा रूचि लेते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि बाल मजदूरी के कारण क्या-क्या बुराइयाँ पनप रही हैं। बच्चों की मजदूरी रोक दी जाए तो लाखों बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। इनके हटने पर लोगों को इनकी जगह नौकरी पर रखा जाएगा, अतः बेरोजगारी की समस्या पर कुछ मात्रा में काबू पाया जा सकेगा।
बाल मजदूरी के कारण अनिवार्य प्रथकमिक शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है। इसकों बंद कर देने पर इन बच्चों को स्कूलों में भेजने के लिए विवश किया जा सकेगा। यद्यपि प्रारंभ में इसमें अनेक कठिनाइयाँ आएँगी, पर इन पर काबू पाना कठिन तो है, पर असंभव कतई नहीं है। इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। इन बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बन सकेगा। अभी वे इसका महत्व भले ही न समझ पा रहे हों पर बाद में उन्हे यह समझ आ जाएगा। करखाने के मालिक अवश्य इसमें रोड़ लगाना चाहेंगे क्योंकि इससे उनका मुनाफा घटेगा। अभी तक वे बाल श्रमिकों का हिस्सा दबाकर रखते थे। अब उन्हें यह हिस्सा बडे़ आयु के मजदूरों को देना पड़ेगा।
बाल मजदूरी एक सामाजिक कलंक है। इसे धोना अवश्यक है। बच्चों का भविष्य दाँव पर नहीं लगाया जा सकता। हमें उनके बारे में अभी सोचना होगा। ’बचपन बचाओ’ आन्दोलन को पूरी ईमानदारी के साथ लागू करना होगा।