Parishram evam Sachai se Judi kuch dohe ka sankalan kijiye
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चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए। वे साहन के साह
कविवर रहीम का कहना है कि इस संसार में जिसकी चिंताएं और आकांक्षाएं ख़त्म हो गयीं है। वह निश्चित और बेफिक्र है वह तो मालिकों का भी मालिक है।
चारा चारा जगत में, छाला हित कर लेय
ज्यों रहीम आता लगे, त्यों मृदंग स्वर देय
कविवर रहीम कहते हैं कि भोजन ही इस विश्व में सबको प्यारा है, अत: दूसरों की भूख के लिए कष्ट सहन करना चाहिए। जिस प्रकार मृदंग की थाप पर लगा आटा मधुर स्वर उत्पन्न करता है उसी प्रकार परिश्रम करें भले ही हाथों में छालें हो जाएं।
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shchai=साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप जाके हिर्दये साँच है ताके हिर्दये आप |
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