parishram ke mahatv pr five points
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हर किसी के जीवन में परिश्रम में बहुत अधिक महत्व होता है, क्योंकि परिश्रम के बिना मनुष्य की जिंदगी व्यर्थ होती है। मेहनत के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
अर्थात, परिश्रम मनुष्य की जिंदगी का अहम हिस्सा है, जिस पर ही मनुष्य की जिंदगी का पहिया आगे बढ़ता है, अगर मनुष्य मेहनत करना छोड़ देता है तो उसका विकास रुक जाता है, अर्थात उसकी जिंदगी नर्क के सामान हो जाती है, क्योंकि परिश्रम से ही मनुष्य अपने जिंदगी के लिए जरूरी सभी कामों को कर पाता है।
वहीं हिन्दू धर्म के पवित्र महाकाव्य गीता में भी श्री कृष्ण ने अर्जुन को परिश्रम अथवा कर्म का महत्व को नीचे दिए गए इस उपदेश द्धारा समझाया था-
”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:।”
अर्थात कर्म अथवा मेहनत ही मनुष्य की असली पूजा है और कर्म ही मनुष्य के सुखी जीवन का आधार है।
वहीं कर्महीन व्यक्ति हमेशा दुखी और दूसरों पर निर्भर रहता है इसके साथ ही वह दूसरों के अंदर बुराइयों को ढूंढता रहता है और दोषारोपण अथवा आरोप मड़ना उसकी आदत में शुमार हो जाता है, जबकि परिश्रमी व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को पाने के लिए सदैव मेहनत करता रहता है और मुश्किल समय में भी हर समस्या का हल ढूंढ लेता है और सुखी जीवन व्यतीत करता है।
परिश्रम का समझो महत्व और आलस का करो त्याग:
जो व्यक्ति आलसी होते हैं, और किसी परिश्रम नहीं करना चाहते हैं, ऐसे लोगों का जीवन दुख और कष्टों में बीतता है।
वहीं जो मनुष्य कार्य-कुशल और परिश्रमी होते हैं और सदैव अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रयास और मेहनत करते रहते हैं और एक दिन वे जरूर सफलता हासिल करते हैं इसलिए मनुष्य को आलस का त्याग कर अपने कर्मों को करना चाहिए।
वहीं आलस्य किस तरह मनुष्य के जीवन का विनाश कर देता है, इस संस्कृत के श्लोक द्धारा बताया गया है –
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रं, अमित्रस्य कुतः सुखम् – -योगवासिष्ठ
अर्थात अगर आलस्यरूपी अनर्थ न होता तो इस संसार में कोई भी व्यक्ति अमीर और विद्धान नहीं होता, क्योंकि आलस्य की वजह से ही यह दुनिया गरीब, निर्धन और अज्ञानी पुरुषों से भरी हुई है।
अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ते रहो:
जो व्यक्ति अपने कर्म पर भरोसा रखते हैं और अपने जीवन के कर्तव्यों को भली प्रकार से निभाते है। वही अपने जीवन में सफल हो पाते हैं। जो व्यक्ति कर्म नहीं करता और न ही अपने दायित्वों को पूरा करते हैं।
ऐसे व्यक्ति को जिंदगी जीने का कोई अधिकार नहीं होता है। हिन्दू धर्म के महाकाव्य गीता में भी कर्म के महत्व को बताया गया है। इसके अलावा बड़े-बड़े महापुरुषों ने भी अपने महान विचारों द्धारा परिश्रम और कर्म के महत्व को बताया है।
परिश्रम से बदलो अपना भाग्य, भाग्य के भरोसे कभी मत रहो:
जो लोग परिश्रम नहीं करते और सफलता नहीं प्राप्त होने पर अपने भाग्य को कोसते रहते हैं, ऐसे लोग हमेशा ही दुखी रहते हैं और अपने जीवन में तमाम कठिनाइयों का सामना करते हैं।
क्योंकि भाग्य की वजह से मनुष्य को सफलता तो मिल सकती है, लेकिन यह स्थाई नहीं होती, जबकि परिश्रम कर हासिल की गई सफलता स्थाई होती है और मेहनत के बाद सफलता हासिल करने की खुशी और इसका महत्व भी अलग होता है।
परिश्रम के बिना भाग्य सिद्ध नहीं होता है, इसको संस्कृत के इस श्लोक द्धारा बखूबी समझाया गया है जो कि इस प्रकार है –
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्!
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति!!
अर्थात –
जिस तरह कोई भी रथ बिना पहिए के एक कदम की दूरी भी नहीं तय कर सकता है, उसी तरह बिना मेहनत अथवा पुरुषार्थ किये किसी भी मनुष्य का भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।
उपसंहार
हम सभी को अपने जिंदगी में परिश्रम अथवा कर्म के महत्व को समझना चाहिए, क्योंकि कर्म करके ही हम अपने जीवन में सुखी रह सकते हैं और अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं।
वहीं ईमानदार, परिश्रमी व्यक्ति ही न सिर्फ अपने कर्म से अपने भाग्य को बदल लेता है और सफलता हासिल करता है बल्कि वह अपने परिवार और देश के विकास की उन्नति में भी सहायता करता है।
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