Parvat Pradesh ka pawas???
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भला ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है जो पहाड़ों पर ना जाना चाहता हो। जिन लोगों को दूर हिमालय पर जाने का मौका नहीं मिल पाता वो लोग अपने आसपास के पहाड़ी इलाकों में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। जब आप पहाड़ों को याद कर रहें हों और ऐसे में किसी कवि की कविता अगर कक्षा में बैठे बैठे ही आपको ऐसा एहसास करवा दे की आप अभी अभी पहाड़ों से घूम कर आ रहे हों तो बात ही अलग होती है।
प्रस्तुत कविता भी इसी तरह के रोमांच और प्रकृति के सुन्दर वर्णन से भरी है जिससे आपकी आंखों और मन दोनों को आनंद आएगा। यही नहीं सुमित्रानंदन पंत की बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे आपके चारों ओर की दीवारे कहीं गायब हो गई हों और आप किसी सुन्दर पर्वतीय जगह पर पहुँच गए हों। जहाँ दूर दूर तक पहाड़ ही पहाड़ हों और झरने बह रहे हों और आप बस वहीं रहना चाह रहे हों।
महाप्राण निराला जी ने भी पंत जी के बारे में कहा था कि उनकी सबसे बड़ी प्रतिभा यह है कि वे अपनी कृतियों को अधिक से अधिक सुन्दर बना देते हैं जिसे पढ़ कर या सुन कर बहुत आनंद आता है।