paryavaran par pach shlok in sanskrit
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शुद्धा न आपस्तन्वे क्षरन्तु यो न: सेदुरप्रिये तं नि दध्म:। गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। वैदिक काल में भी पर्यावरण के प्रदूषित होने की समस्या उपस्थित हुई थी तथा समुद्र मन्थन और कुछ नहीं, अपितु देवताओं एवं असुरों द्वारा प्रकृति का निर्दयतापूर्वक दोहन था, जिससे अमृत के साथ-साथ हलाहल के रूप में प्रदूषण ही निकला होगा।
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