Hindi, asked by UMER, 1 year ago

paryavaran pradurshan

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Answered by Galaxy
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पृथ्वी पर विकास मानव की आवश्‍यकताओं को कितना भी पूरा करे मानव को कम ही प्रतीत होता है। सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने की कोई सीमा नहीं होती है। परिवार की सुख सुविधाओं में बढ़ती हुई आवश्‍यकताएं बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। इसलिए मानव को इसमें आवागमन के लिए साइकिल से मोटरसाइकिल फिर मोटरसाइकिल से कार के रूप में अपने आप को जोड़ना पड़ता है। मानव के इस काम को प्राकृतिक रूप से देखना ही उचित होगा क्योंकि यह उसकी आवश्‍यकता बनती जा रही है। कोई भी व्यक्ति विकास करते हुए आगे ही जाना चाहता है न कि पीछे की ओर मगर आज अपने इस विकास के क्रम में उसे पता ही नहीं चल पा रहा है कि कब वह और कैसे प्रकृति को नुकसान पहुचा रहा है। वाहन विकास की कड़ी में नित नई खोज हो रही है जहां पर हम प्रकृति के अनुकूल वाहनों को प्रस्तुत करते जा रहे हैं जिससे कि प्रकृति को कम नुकसान हो मगर फिर भी प्रकृति को होने वाले नुकसानों को जितना रोका जाए वह कम ही होगा क्योंकि प्रकृति में हमारी जो भी ताकत विकास के लिए है वह प्रकृति को नुकसान पहुचाने वाले तत्वों को जन्म अवष्य ही दे रही है। सच कहिये तो हम विकास के नाम पर विनाश करने वाली जहरों के समूहों को पर्यावरण में ही फेंक रहे हैं और दिन पर दिन उससे होने वाले नुकसान का सामना भी कर रहे है जिसके कारण हमें कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के अधीन होना पड़ा रहा है। आइये विचार करिये कि हमारी प्रकृति आधारित जीवन की गति कही जाने वाली हार्स पावर युक्त वाहन क्या हमारी आज की जरूरत नहीं बन सकते हैं। हमें जरूरत है पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने की जिससे कि हमारा स्वस्थ्य भी प्रभावित न होने पाये और प्रकृति को भी नुकसान न होने पाये।

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Answered by gauher
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प्रस्तावना : विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं। 

प्रदूषण का अर्थ : प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना! न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना ! 

प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ! 

वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है। 

जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है। 

ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।

प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है। 

प्रदूषण के कारण : प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है। 

सुधार के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।

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