Hindi, asked by tusharchauhan77, 1 year ago

paryavaran suraksha pe samvad

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Answered by sunaina37
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महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, दो चीजें असीमित हैं-एक ब्रह्माण्ड तथा दूसरी मानव की मूर्खता। मानव ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं। इसमें से पर्यावरण प्रदूषण अहम है। विधानसभा, संसद, न्यायालय, उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय, अखबार, टेलीविजन सब जगह पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण पर चर्चा है, फिर भी न तो कोई दोषी पाया जाता है न किसी को सजा मिलती है। अनेकों स्थलों पर प्रदूषण का स्तर जरूर कम होता है, पर पूर्णतया नियंत्रित नहीं हो पा रहा है, तो हम किसे दोषी ठहराएं। क्या किसी को दोषी ठहराना ही जरूरी है? और किसी को सजा ही देना जरूरी है, या दंड देना ही समाधान है? मेरी समझ में शायद नहीं। चूंकि दंड संहिता से ही सुधार होता तो अब तक अदालतों से दंडित लाखों लोगों के उदाहरण द्वारा सारे प्रकार के अपराध ही बंद हो चुके होते। पर हम देखते हैं, ऐसा हुआ नहीं। तदैव, हम समझते हैं कि इसके लिए जरूरी है जन-जागृति, जन जिम्मेदारी, जन भागीदारी, जन कार्यवाही, सामाजिक दायित्व एवं सामाजिक संकल्प। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात के 20वें संस्करण में वर्तमान जल समस्या के लिए जन भागीदारी का आह्वान किया है। इसका सीधा अर्थ है कि सरकार की करोड़ों-अरबों की सफाई योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद सौ प्रतिशत सफलता जनभागीदारी पर ही निर्भर है।

प्रकृति का प्रत्येक कार्य व्यवस्थित एवं स्वाचालित है। उसमें कहीं भी कोई दोष नहीं है। जीव के शरीर की रचना उसकी अपनी विशेषताओं तथा पर्यावरण के ?अनुसार इतनी सटीक है कि कोई भी कमी निकाल पाना सम्भव नहीं है। भौतिक पदार्थों का चक्र सन्तुलित है। कहीं भी किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आता। मानव प्रकृति को एक अंग है। अपनी अविवेकी बुद्धि के कारण अपने आपको प्रकृति का अधिष्ठाता मानने की भूल करने लगा है। मानव द्वारा की गई ये भूलें प्रकृति के कार्य में व्यवधान डालती हैं ओर ये व्यवधान जीव जगत् को हानि पहुंचाते हैं। मानव पर्यावरण का एक महत्तवपूर्ण एवं प्रभावशाली घटक है। पर्यावरण से परे उसका अस्त्त्व निहीं रह सकता। पर्यावरण के अनेक घटकों के कारण वह निर्मित हुआ तथा अनेक कारकों से उसकी क्रियाएं प्रभावित होती रहती हैं। मानव पर्यावरण का एक महत्तवपूर्ण उपभोक्ता है। अपने नैतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास की उच्चतम उपलब्धियां मानव उसी समय प्राप्त कर पाएगा जबकि वह प्राकृतिक सम्पदा का विवेकपूर्ण उपयोग करेगा। जनाधिक्य, भोगवाद की संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, युद्ध, परमाणु परीक्षण, औद्योगिक विकास आदि के कारण नई-नई पारिस्थितिकी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं को उत्पन्न न होने देना मानव जाति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। विश्व के वर्तमान परिवेश में सर्वाधिक संकटग्रस्त स्थिति में पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत अनिवार्य पर्यावरण संकटग्रस्त हो गया है। पृथ्वी को इस संकट से बचाने के लिए तथा स्थानीय स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित रखने के साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित करने हेतु ढेरों कानून राष्ट्रीय स्तर पर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, स्थानीय स्तर पर भी बनाए जा चुके हैं। फिर भी प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता, पर्यावरण का संरक्षण तो दूर उसका स्तर सुरक्षित तक नहीं रह पाता। वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून 1981 के उल्लंघन हेतु कठोर कारावास की सजा के ही प्रावधानों के बावजूद राष्ट्र में सैकड़ों शहर के वायुमंडल पर प्रदूषण का स्तर क्रांतिक स्तर तक पहुँच चुका है, और पहुँच रहा है। जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1976 में अर्थदंड एवं कारावास के प्रावधानों के बावजूद पूरी की पूरी यमुना जहरीली हो चुकी है। गंगा-गंदी हो चुकी है, प्लास्टिक वेस्ट पर कानून में भी भारी अर्थदंड के बावजूद प्लास्टिक कचरों के ढेर बढ़ रहे हैं। म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (नगरीय ठोस अपशिष्ठ) कानून में भी कठोर दंड के बावजूद महानगरों में गंदे कचरों के पहाड़ प्रकट हो चुके हैं। हमने यह पाया है कि इस दायित्व के निर्वहन के लिए जिम्मेदार समाज के महत्वपूर्ण घटक भी अपनी जिम्मेदारी को कानून द्वारा सरकार पर थोप देना ही पर्याप्त मानते हैं। किन्तु कानून के उल्लंघन के लिए किसी एक आदमी को कितनी भी बड़ी सजा क्यों न दे दी जावे, उससे ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं होता, जिससे कि सफलतापूर्वक प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके। अपितु, व्यावहारिक रूप से प्रदूषण नियंत्रण के सफल उदाहरणों को प्रस्तुत किया जावे, तो उसके अनुगामी, तीव्रतापूर्वक बढ़ सकते हैं।अर्थ प्रधान युग के अंतर्गत् विकास के जिस लक्ष्य को पाने के लिए अंधी दौड़ चल पड़ी है, वहां अविकसित देश से विकसित देश के स्तर को पाने के मार्ग में चीन में परिणिति यह रही है कि बीती फरवरी के अंतिम सप्ताह में चीन की राजधानी बीजिंग में प्रदूषण के भयावह स्तर को दृष्टिगत करते हुए आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। स्कूल, कालेजों की भी छुट्टी करनी पड़ गई।

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