पश्चिम पूरब की गोदावरी में क्या अंतर है
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देश भारत
राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश
प्रमुख नगर नासिक, नांदेड, निज़ामाबाद, राजामुन्द्री
लम्बाई 1465 किमी (910 मील)
पौराणिक उल्लेख वराह पुराण[1] ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
धार्मिक महत्त्व गोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं।
गूगल मानचित्र गोदावरी नदी
अन्य जानकारी कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है।
गोदावरी नदी (अंग्रेज़ी: Godavari River) भारत की प्रसिद्ध नदी है। यह नदी दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील (लगभग 1440 कि.मी.) है। यह नदी नासिक त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। समुद्र में मिलने से 60 मील (लगभग 96 कि.मी.) पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। बंगाल की खाड़ी में दौलेश्वरम् के पास डेल्टा बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है। भारत की प्रायद्वीपीय नदियाँ- गोदावरी और कृष्णा, ये दोनों मिलकर 'कृष्णा-गोदावरी डेल्टा' का निर्माण करती हैं, जो सुन्दरबन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेल्टा है। इस डेल्टा को बहुधा 'केजी डेल्टा' भी कहा जाता है।
मुख्य धाराएँ
गोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं-
गौतमी
वसिष्ठा
कौशिकी
आत्रेयी
वृद्ध गौतमी
तुल्या
भारद्वाजी
पौराणिक उल्लेख
पुराणों में गोदावरी नदी का विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है-
महाभारत, वनपर्व[2] में सप्त गोदावरी का उल्लेख है-
'सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियतो नियताशान:।'
ब्रह्मपुराण के 133वें अध्याय में तथा अन्यत्र भी गोदावरी (गौतमी) का उल्लेख है।
श्रीमद्भागवत[3] में गोदावरी की अन्य नदियों के साथ उल्लेख है-
'कृष्णवेण्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या’।'
विष्णुपुराण[4] में गोदावरी से सह्य पर्वत से निस्सृत माना है-
'गोदावरी भीमरथी कृष्णवेण्यादिकास्तथा। सह्मपादोद्भवा नद्य: स्मृता: पापभयापहा:।'
महाभारत, भीष्मपर्व[5] में गोदावरी का भारत की कई नदियों के साथ उल्लेख है-
'गोदावरी नर्मदा च बाहुदां च महानदीम्।'
गोदावरी नदी को पांडवों ने तीर्थयात्रा के प्रसंग में देखा था-
'द्विजाति मुख्येषुधनं विसृज्य गोदावरी सागरगामगच्छत्।'[6]
महाकवि कालिदास के 'रघुवंश'[7] में गोदावरी का सुंदर शब्द चित्र खींचा है-
'अमूर्विमानान्तरलबिनोनां श्रुत्वा स्वनं कांचनर्किकणीम्, प्रत्युद्ब्रजन्तीव खमुत्पतन्य: गोदावरीसारस पंक्तयस्त्वाम्’;’ ‘अत्रानुगोदं मृगया निवृतस्तरंग वातेन विनीत खेद: रहस्त्वदुत्संग निपुण्णमुर्घा स्मरामि वानीरगृंहेषु सुप्त:।'
गोदावरी नदी
कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है।
वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। ब्रह्मपुराण में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात् पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे।[8] पाणिनि[9] के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च' वार्तिक में 'गोदावरी' नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' भी परिलक्षित होता है। रामायण, महाभारत एवं पुराणों में इसकी चर्चा हुई हैं। वन पर्व[10] ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से आच्छादित तटवाली थी और यहाँ मुनिगण तपस्या किया करते थे। रामायण के अरण्य काण्ड वा. रा.[11] ने गोदावरी के पास के पंचवटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो अगस्त्य के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। ब्रह्म पुराण[12] में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तार वर्णन हुआ है। तीर्थंसार[13] ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों[14] से लगभग 60 श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराण के गौतमी वाले अध्याय 1500 ई. के पूर्व उपस्थित थे। वामन काणे के लेख के अनुसार[15] ब्रह्म पुराण ने गोदावारी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है।[16] ब्रह्मपुराण[17] में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में गंगा को गौतमी और उत्तर में भागीरथी कहा जाता है। गोदावरी की 200 योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं।[18] दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है।[19]
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