पशु पक्षियों के प्रति प्रेम पर अनुच्छेद
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जिस प्रकार हम इंसानों को प्रेम की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार पशुओ को भी प्रेम की आवश्यता होती है और वो इंसान द्वारा किये जाने वाले प्रेम को आसानी से पहचान लेते है। पशुओ में निस्वार्थ प्रेम की भावना होती है।
आपने कई बार देखा होगा मोहल्ले में घूमने वाले कुत्ते को देखकर मुस्कुरा दो अथवा उसे अपने पास भर आने दो, तो इतने में ही वह आपके आसपास आ जाता है एवं पता ही नहीं चलता कि आप व उसकी पक्की दोस्ती कब परवान चढ़ने लगी।
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पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए यदि हम सोचें तो मानव जीवन में पक्षियों का बहुत बड़ा महत्व है। आकाश में उडते हुए ये पक्षी पर्यावरण की सफाई के बहुत बड़े प्राकृतिक साधन हैं। गिद्ध,चीलें,कौए,और इनके अतिरिक्त कई और पशु पक्षी भी हमारे लिए प्रकृति की ऐसी देन हैं जो उनके समस्त कीटों,तथा जीवों तथा प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का सफाया करते रहते हैं जो धरती पर मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। कितने ही पशु पक्षी भी हमारे लिए प्रकृति की ऐसी देने हैं,जो समस्त कीटों,जीवों तथा प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का सफाया करते हैं जो धरती पर मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
कितने पशु पक्षी हैं जो कीट कीटाणुओं तथा प्रदूषण युक्त वस्तुओं को खाकर मानव जीवन के लिए उपयोगी वनस्पतियों की रक्षा करते हैं। ऐसे पशु पक्षियों का न रहना अथवा लुप्त हो जाना मनुष्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गिद्ध, चीलें,बाज और कौए तथा अन्य अनेक प्रजातियों के ये पक्षी प्राकृतिक संतुलन रखने के लिए अपना असाधारण योग देते हैं। मानव जीवन के लिए इन पक्षियों का जो महत्व है,उसका अनुमान हम अभी ठीक ठीक नहीं लगा पा रहे हैं। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो भविष्य में हमें अनुभव होगा कि पशु पक्षियों के छिन जाने से हम कितने बड़े घाटे में आ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि मनुष्य के लिए बहुत बड़ी और गंभीर चिंता का विषय है कि इन पक्षियों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। कौन नहीं जानता कि चीलें और गिद्ध मृत पशु पक्षियों को अपना आहार बनाकर पर्या वरण को स्वच्छ बनाए रखने का कर्तव्य पूरा करते रहे हैं।
वे मृत जानवरों के शवों के गलने सड़ने और प्रदूषण फैलने से पहले उनका सफाया कर देते हैं। धरती का वातावरण विषैला होने से बचा रहता है। गिद्ध और चीलें ही नहीं,कौए भी पक्षियों की उसी श्रेणी में आते हैं,जिन्हें प्रकृति ने मनुष्य के लिए स्वच्छकार बनाकर भेजा है। ये पक्षी कूड़े करकट के ढेरों में पड़ी गलने सड़ने वाली वस्तुओं को खाकर समाप्त करते रहते हैं। रिपोर्ट में कहा जाता है कि हमारी चिंता का विषय यह है कि जिस प्रकार गिद्ध औरचीेलें हमारे आकाश से गायब होती चली गयी इसी प्रकार अब कौए भी हमसे विदाई लेते जा रहे हैं।
प्रश्न यह नहीं कि जब कोई इन पक्षियों का शिकार नहीं कर रहा है,कोई इन्हें मार नहीं रहा है। सत्ता नहीं रहा है,तब क्या कारण है कि ये हमारी बस्तियों और शहरों से विदा होते जा रहे हैं,लुप्त या समाप्त होते जा रहे हैं ? सिरसा स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र में कार्यरत वैज्ञानिक डा. के.एन. छाबड़ा ने भी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा है कि गिद्ध,चीलें और कौए इस क्षे़त्र से गायब होते जा रहे हैं। उन्होंने इस तथ्य पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि पिछले कुछ समय में कौओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आई है। पहले यदि कोई कौआ बिजली के तार पर करंट लगने से चिपककर मर जाता था तो उसके शोक में शोर करते हुए हजारों कौए इकट्ठे होकर आसमान सिर पर उठा लेते थे। आस पास के पूरे क्षेत्र में कौओं का सैलाब उमड़ पड़ता था। पर अब ऐसा नहीं होता। अब यह पक्षी समूहों में बहुत कम नजर आता है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि पशु पक्षी अपनी प्राकृतिक बु द्धि से कीटनाशक दवाओं के प्रभाव को भली भांति भांप लेते हैं और उन स्थानों से पलायन कर जाते हैं,जहां इनका अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है और जहां की वनस्पतियों एवं वातावरण में इन विषैली औषधियों के अंश घुल मिल जाते हैं। किन्तु जब अन्य स्थानों पर भी उन्हें वैसा ही प्रदूषण मिलता है तो इस कारण उनकी प्रजातियां धीरे धीरे लुप्त होने लगती हैं जब इस सम्बंध में अन्य प्राणी विशेषज्ञोंसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ऐसे समस्त पशु पक्षी जो मृत होते जा रहे हैं कि जिस मांसको वे खाते हैं,वह स्वयं अत्यधिक विषैला हो चुका होता है।
यह स्थिति और भी अधिक गंभीर है,क्योंकि हम अपने अपने पालतु पशुओं को जोचारा दे रहे हैं,उस पर रासायनिक खाद एवं कीटनाशक औषधियों का विषैला प्रभाव चारे मेंबना रहता है। हम उसका सेवन करते रहते हैं वे स्वयं तो समय से पहले काल का ग्रास बनतेही हैं,साथ ही उन पशु पक्षियों को भी अपना निशाना बना लेते हैं जो उनके मांस का सेवनकरते हैं। अन्य जीवों की अपेक्षा प्रतिरोधक शक्ति कम होने के कारण वे शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होजाते हैं। यही कारण है कि अब विकसित देशों में बहुत सी कीटनाशक औषधियों तथा कुछविशेष रासायनिक खादों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
पश्चिम के विकसित देशों ने अपने यहां जिन कीटनाशक औषधियों अथवा रासायनिक खादों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है,वहां का व्यापारी वर्ग उन्हीं को विकासशील देशों में भेजकर मोटा लाभ अर्जित कर रहा है। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि पर्या वरण में विषैलेतत्वों के निरंतर बढते रहने पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। वास्तविकता यह है कि आज वातावरण में जिस आेर भी देखे,विष ही विष घुला हुआ है। गांवों,बस्तियोंनगरों और महानगरों से लेकर जंगलों और पर्व तों तक में विस्फोटक पदार्थों का जिस ढंग सेखुला प्रयोग हो रहा है,उसके विस्तार मेंजाने की आवश्यकता नहीं है। डीजल और पैट्रोल जैसे ईंधन की बढती हुई खपत और उसके फलस्वरूप वातावरण में घुलते हुए धुंऐ ने धरती परजीवन को कितना दुष्कर बना दिया है,यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। ऐसी प्रदूषित हवा ऐसेप्रदूषित जल,ऐसे प्रदूषित आहार को सेवन करने वाले पशु पक्षीयों को (जो मानव जाति सेअधिक संवेदनशील हैं) यदि इस विष को सहन न करते हुए लुप्त होते जा रहे हैं तो इसमेंआश्चर्य की बात नहीं है।