पत्रं अधोलिखित गद्यांशस्य हिंदीभाषायाम् अनुवाद कुरुत।
एकदा कश्वन भक्तिमान् बालकः आसीत्। सः सर्वाणि अपि कार्याणि ईश्वरभक्त्या करोति स्म। सर्वत्र ईभरमेव पश्यति स्मा
कार्यलग्नः अपि सः कदाचित् ध्यानमग्न भवति स्म।
एकदा द्वादशवर्षीयं तं बालक जनकः उवाच भोः त्वं किमपि कार्य ध्यानेन न करोषि। अतः जीवने कदापि सफल न
भविष्यसि इति। तदा जनक तसो बालकाय किञ्चित धनं दत्त्वा अवदत् यत् गच्छ अनेन धनेन कञ्चन व्यापार साधपतु येन
तव जीवनं सरलतया चलेत्। बालक: अनिच्छन्नपि धनं स्वीकृत्य नगरं प्रति प्रस्थितवान् किञ्चित् दूरं गत्वा सः कतिचन
साधून अपश्यत्। सर्वे साधवः ईश्वरभक्तो मनाः भजनानि गायन्ति स्म। तान् दृष्टा बालकः स्वव्यापारस्य विचार विस्मृतवान्,
अपि च साधूनां गणे मिलित्वा ईश्वरभक्तो लीनः अभवत्। किञ्चित
कालानन्तरं सः ज्ञातवान् यत् एते साधवः चिरकालात् बुभुक्षिता: परिभ्रान्ताः च सन्ति। तेषु साधुषु इतोऽपि भक्ति कर्तु
सामर्थ्य नास्ति।
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Answer:
(i) विद्या-हीन व्यक्ति सदेव दूसरों के लिए भार बना रहता है दुसरो पर आश्रित व्यक्ति मानव-जीवन की उपाधि नहीं पा सकता |
(ii) विद्या के निम्न दो रूप बताए गए हैं
1. जो हमें जीवनयापन के लिए अर्जन करना सिखाती है |
2. जो हमें जीना सिखाती है
(iii) वर्तमान शिक्षा पद्धति का लाभ है कि ये हमारी दृष्टिकोण को विकसित करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है | परंतु इसका नुक्सान भी है ये हमें सार्थक जीना नहीं सिखाती बल्कि भौतिकवादी बना रही है |
(iv) विद्या-हीन व्यक्ति की समाज में दुर्दशा होती है वह भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग विहीन पशु कहलाता है।
(v) शिक्षित युवकों को अपना बहुमूल्य समय नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में बर्बाद करना पड़ता है |
(vi) (क) परावलंबी = पर + अवलंबी
(ख) जीविकोपार्जन = जीविका + उपार्जन
(vii) जीवन में कौशल्या शिक्षा का महत्त्व