path ke Aadhar par Tulsi Ke Bhasha Saundarya par 10 panktiyan likhiye class 10th chapter 2 Ram Lakshman Parshuram samvad
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तुलसी की भाषा सरल, सरस, सहज और अत्यंत लोकप्रिय भाषा है। वे रस सिद्ध और अलंकारप्रिय कवि हैं। उन्हें अवधी और ब्रजे दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। रामचरितमानस की अवधी भाषा तो इतनी लोकप्रिय है कि वह जन-जन की कंठहार बनी हुई है। इसमें चौपाई छंदों के प्रयोग से गेयता और संगीतात्मकता बढ़ गई है। इसके अलावा उन्होंने दोहा, सोरठा, छंदों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने भाषा को कंठहार बनाने के लिए कोमल शब्दों के प्रयोग पर बल दिया है तथा वर्गों में बदलाव किया है; जैसे
• का छति लाभु जून धनु तोरें ।
• गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे
तुलसी के काव्य में वीर रस एवं हास्य रस की सहज अभिव्यक्ति हुई है; जैसे
बालकु बोलि बधौं नहि तोहीं। केवल मुनिजड़ जानहि मोही।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाही। जे तरजनी देखि मर जाही।।
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