पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………………….॥
अन्वयः पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः, परितः हिंस्रा: घोराः पशवः (भ्रमन्ति)। यद्यपि गमनम्। सुदुष्करं खलु (अस्ति), सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।
शब्दार्थ : पथि-मार्ग में। पाषाणाः-पत्थर। विषमाः-असामान्य। प्रखराः-तीक्ष्ण, नुकीले। हिंस्राः-हिंसक। पशवः-पशु-पक्षी। परितः-चारों ओर। घोराः-भयंकर, भयानक। सुदुष्करम्-अत्यन्त कठिनतापूर्वक | साध्य। खलु-निश्चय से। यद्यपि-जबकि। गमनम्-जाना (चलना)।
सरलार्थ : रास्ते में विचित्र (अजीब) से नुकीले और ऊबड़-खाबड़ पत्थर तथा चारों ओर भयानक चेहरे और हिंसक व्यवहार वाले पशु घूमते हैं। (अत:) निश्चित रूप से जबकि वहाँ जाना कठिन है। (फिर भी) हमेशा ही आगे-आगे कदम रखो।
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saara to Tumne hi kar Diya Hume kya karna hai .......
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