पद्यांश:
अति मलीन वृषभानु कुमारी।
हरि श्रम जल भीज्यौ उर अंचल, तिहि लालच न धुवावति
सारी।।
अध मुख रहति, अनत नहिं चितवति, ज्यौ गथ हारे थकित
जुवारी।
छूटे चिकुर बदन कुम्हिलाने, ज्यौं नलिनी हिमकर की मारी।।
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TVF : GUITAR : PIANO : LINKER
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