पढ़ाए गए दूसरे एवं तीसरे वाख का सप्रसंग भावार्थ लिखें।
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ललघद का जीवन परिचय : ललघद का जन्म 1320 के आस-पास कश्मीर स्थित पांपोर गांव में हुआ था। ललघद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारीफ़ा आदि नामों से भी जाना जाता है। वे चौदहवीं सदी की एक भक्त कवयित्री थी, जो कश्मीर की शैव-भक्ति परम्परा और कश्मीरी भाषा की एक अनमोल कड़ी मानी जाती हैं। कश्मीरी संस्कृति और कश्मीर के लोगों के धार्मिक और सामाजिक विश्वासों के निर्माण में लल्लेश्वरी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
ललघद की काव्य शैली को वाख कहा जाता है। इनकी कविताओं में चिंतन एवं भावनात्मकता का विचित्र संगम है। इन्होंने अपने वाखों के माध्यम से उस समय समाज में व्याप्त धार्मिक आडंबरों का खुल कर विरोध किया है। इनकी काव्य-शैली की भाषा अत्यंत सरल मानी जाती है, जिसके वजह से ललघद और भी प्रभावशाली बन जाती हैं। ललघद आधुनिक कश्मीरी भाषा का प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं।
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साँकल-जंजीर। भावार्थ-कवयित्री मनुष्य को मध्यम मार्ग को अपनाने की सीख देती हुई कहती है कि हे मनुष्य! तुम इन सांसार की भोग विलासिताओं में डूबे रहते हो, इससे तुम्हें कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। तुम इस भोग के खिलाफ यदि त्याग, तपस्या का जीवन अपनाओगे तो मन में अहंकार ही बढ़ेगा।
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