पवित्र पुस्तक गीता क कोई पांच श्लो
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भोपाल के जाने माने ज्योतिषाचार्य और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में प्रोफेसर प्रद्युम्न पाठक ने गीता के 5 ऐसे श्लोकों का महत्त्व बताया जो हर मनुष्य का जीवन बदल सकते हैं। आइए हम आपको बताते हैं इन श्लोकों का मतलब... (1) नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
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वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥
भावार्थ : मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात् जीवन-शक्ति हूँ॥
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम् ।अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम् ।अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥
भावार्थ : मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ॥
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥
भावार्थ : घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान॥
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
भावार्थ : मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥
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