“पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा झुक, इस झुलसते विश्व-वन की " मैं कुसुम ऋतु रात रे मन । '
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पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा झुक, इस झुलसते विश्व-वन की " मैं कुसुम ऋतु रात रे मन । '
यह पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है | पंक्तियों में उच्च भाषा का प्रयोग किया है | कवि पंक्तियों में प्रकृति का वर्णन किया है |
जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी से मनुष्य अपने घर में बंद होकर दिन-हीन घर के अंदर ही जीवन व्यतीत करने पर विवश हो जाता है , और शीतलता की कामना करता है | उसी प्रकार वेदना की अग्नि में झुलसती आत्मा शरीर के अंदर बंद होकर तड़प कर अपनी मुक्ति की कामना करती है |
उस समय श्रद्धा भक्ति , मनुष्य के मन में सुख प्रदान करती है , जिस तरह गर्मी में शीतल रात्रि हमें राहत देती है |
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