Ped ka dard kavita ka saransh
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Answer:
कितने प्यार से किसी ने
बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने
लोरी गाकर सुलाया था ।
कितना विशाल घना वृक्ष
आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा
पौधे से वृक्ष हो गया हूँ ।
कभी कभी मन में
एकाएक विचार करता हूँ
आप सब मानवों से
एक सवाल करता हूँ ।
दूसरे पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी काटा जाऊँगा
अन्य वृक्षों की भाँति
क्या मैं भी वीरगति पाउँगा ।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी चलाते हो
क्यों बर्बरता से सीने
को छलनी करते हो ।
मैं तो तुम्हारा सुख
दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए
साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को
देता हीं देता हूँ
पर बदले में
कछ नहीं लेता हूँ ।
प्राण वायु देकर तुम पर
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें
भोजन देता हूँ।
दूषित हवा लेकर
स्वच्छ हवा देता हूँ
पर बदले में कुछ नहीं
तुम से लेता हूँ ।
ना काटो मुझे
ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
Explanation:
अरे भाई!
क्या करते हो ये?
अभी मैं जीवित हूं,
मेरे भी प्राण हैं।
तुम सब की तरह
मैं श्वासोच्छवास करता हूं।
और अपना आकार बढ़ाता हूं।
प्रकृति के माध्यम से
जीवन की धुरी को
संतुलित बनाता हूं।
तुम्हारी छोड़ी हुई श्वासों से
मैं जिंदा रहता हूं।
अपनी उच्छवास से मैं,
तुम्हें जीवनदान देता हूं।
पर हां,
रहता अवश्य हूं
इस बियाबान जंगल में
अपने सभी साथियों
और सहयोगियों के साथ
जो ये सब तुम्हारी ही तरह
खाते-पीते-सोते
रोते और गाते हैं।
जीवन की खुशियों को
तुम्हारी तरह मनाते हैं।
मत काटो भाई!
मेरी बाहों को मत काटो।
मोटी-पतली जंघाओं को,
नन्हे-मुन्ने अंकुरों को
और
लहलहाती पत्तियों को
मत काटो।
चोट लगने पर
मुझे भी दर्द होता है।
मेरा पूरा गात
विचलित हो उठता है।
मेरे भाइयों को मत काटो।
तुम्हारी हर चोट पर
मेरे दिल की कसक से
पीर का नीर
शरीर की आंखों से
अविरल बह चलता है।
अस्तु,
मत काटो भाई
मुझे मत काटो।
श्वासोच्छवास : श्वास लेना, छोड़ना
उच्छवास : छोड़ी गई श्वास
साभार- देवपुत्र