pinjra ma band popat ki atmakatha in hindi
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तोते की आत्मकथा
मैं खुले आकाश में विचरण करने वाला तथा अपनी इच्छा अनुसार पेड़ की हर टहनी पर झूलने वाला तोता हूं। मैं अपने मित्रों के साथ आकाश की असीम ऊंचाइयों को नापने निकलता था| वह दिन भी कितने प्यारे थे, जब हम एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान पर पहले पहुंचने की होड़ में एक दूसरे से आगे निकल जाते थे। जंगल में हम अपनी इच्छा अनुसार फलों को खाते थे। जहां इच्छा की वहां नदी झरने नाली आदि का पानी पिया करता था। लेकिन एक दिन जंगल में चावल के कणों को देख कर मेरा जी ललचा गया और मैं उन चावल के दानों को खाने के लिए जैसे ही वहां उतरा तो मैं शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में फस गया।
जाल से निकाल कर कि मुझे एक पिंजरे में बंद कर दिया गया। अब ना तो मैं उड़ सकता हूं और ना ही अपनी इच्छा अनुसार कोई खाना खा सकता हूं| मुझे एक डोरी में खाना हुआ पानी दिया जाता है ।मैं सैकड़ों बार पिंजरे से बाहर निकलने की नाकाम कोशिश कर चुका हूं इन कोशिशों में कई बार मेरे पंख और टांगे चौठ जख्मी हो चुके हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि मैंने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया गया था, जिसके कर्मों की सजा मुझे यहां पिंजरे में बंद होकर के भुगतनी पड़ रही है। सोच में पड़ जाता हूं कि इंसान कितना स्वार्थी हो गया है अपने मनोरंजन के लिए किसी दूसरे जीव को इतने कष्टकारी पिंजरे में बंद कर देना क्या यही इंसान की सभ्यता और संस्कृति है?
चाहे वह भले ही मुझे बहुत ही बढ़िया खाना क्यों ना देते हो लेकिन मुझे इस खाने से जंगल में कड़वे कषाय फल खाना अच्छा लगता है। और मेरा दिन इसी उम्मीद में कट जाता है कि शायद मैं कल यहां से उड़ जाऊंगा। लेकिन वह दिन कभी आता ही नहीं लेकिन मेरी कोशिश जारी है कभी तो इंसान को यह आभास होगा की मुझे किस तरह की पीड़ा का एहसास होता है इस पिंजरे में, रोज घुट-घुट कर के जीता हूं।