Hindi, asked by nareshsaini6060, 10 months ago

Pita ke sath vyatit ki gai lekhak ki prabhat ki dincharya ka varnan kijiye

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Answered by bhatiamona
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यह प्रश्न ‘शिवपूजन सहाय’ द्वारा लिखित ‘माता का आंचल’ पाठ से संबंधित लगता है। इसमें लेखक की अपने पिता के साथ व्यतीत दिनचर्या का वर्णन इस प्रकार है।

लेखक कहता है कि लेखक अपना ज्यादातर समय पिता के साथ ही बिताता था। वे अपने पिता के साथ बैठक में सोता था। पिता सुबह तड़के ही उठ जाते और नहा-धो कर पूजा करने बैठ जाते। वे लेखक को भी नहला-धुला कर पूजा करने के लिए बैठा लेते थे। उसके सर पर भभूत का तिलक लगा देते।

रामायण का पाठ आदि करते। पूजा-पाठ से निपट कर उसके पिता उसे लेकर गंगा नदी की ओर चल पड़ते थे और वहां पर राम नाम कागज लिपटी हुईं आटे की गोलियां मछलियों को खिलाते। अपने पिता के कंधे पर बैठा लेखक खूब प्रसन्न होता। मछलियों को गोलियां खिला वे लोग लौटने लगते। लेखक रास्ते में पेड़ की डाल पर झूला झूलने लगता। कभी-कभी उसके पिता उसे कुश्ती भी सिखाते।

कुश्ती के दांव-पेच से लेखक को भी बहुत आनंद आता था। उसके बाद जब वे लोग काम करके घर आते तो खाना खाने के लिए बैठते। लेखक के पिता बड़े प्रेम से उसे खाना खिलाते। उसकी माँ भी थोड़ा और खान के लिये लेखक की मनुहार करती। लेखक का अधिकतर समय पिता के सात व्यतीत होने के बावजूद भी जब कभी लेखक को किसी बात पर रोना आता तो वह अपनी माँ के आंचल में जाकर दुबक जाता।

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