History, asked by johntirkey734014, 7 months ago

plassey ke adhure karya ko boxer ne pura kaise kiya? 200 se 250 words mein likhna hai

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Answered by hrushikeshmohanty201
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बक्सर का युद्ध 22अक्टूबर 1764 में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नवाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया।

पृष्ठभूमि

प्लासी के युद्ध के बाद सतारुढ़ हुआ मीर जाफ़र अपनी रक्षा तथा पद हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी पर निर्भर था। जब तक वो कम्पनी का लोभ पूरा करता रहा तब तक पद पर भी बना रहा। उसने खुले हाथों से धन लुटाया, किंतु प्रशासन सम्भाल नहीं सका, सेना के खर्च, जमींदारों की बगावतों से स्थिति बिगड़ रही थी, लगान वसूली में गिरावट आ गई थी, कम्पनी के कर्मचारी दस्तक का जम कर दुरूपयोग करने लगे थे। वो इसे कुछ रुपयों के लिए बेच देते थे। इस से चुंगी बिक्री कर की आमद जाती रही थी। बंगाल का खजाना खाली होता जा रहा था।

हाल्वेल ने माना की सारी समस्या की जड़ मीर जाफ़र है। उसी काल में जाफर का बेटा मीरन मर गया जिससे कम्पनी को अवसर मिल गया था और उसने मीर कासिम जो जाफर का दामाद था, को सत्ता दिलवा दी। इस हेतु २७ सितंबर १७६० एक संधि भी हुई जिसमें कासिम ने ५ लाख रूपये तथा बर्धमान, मिदनापुर, चटगांव के जिले भी कम्पनी को दे दिए। इसके बाद धमकी मात्र से जाफ़र को सत्ता से हटा दिया गया और मीर कासिम सत्ता में आ गया। इस घटना को ही १७६० की क्रांति कहते हैं।

मीर कासिम का शासन काल १७६०-१७६४

मीर कासिम ने रिक्त राजकोष, बागी सेना, विद्रोही जमींदार जैसी विकट समस्याओ का हल निकाल लिया। बकाया लागत वसूल ली, कम्पनी की माँगें पूरी कर दी, हर क्षेत्र में उसने कुशलता का परिचय दिया। अपनी राजधानी मुंगेर ले गया, ताकि कम्पनी के कुप्रभाव से बच सके। सेना तथा प्रशासन का आधुनिकीकरण आरम्भ कर दिया।

उसने दस्तक पारपत्र के दुरूपयोग को रोकने हेतु चुंगी ही हटा दी। मार्च १७६३ में कम्पनी ने इसे अपने विशेषाधिकार का हनन मान युद्ध आरम्भ कर दिया। लेकिन इस बहाने के बिना भी युद्ध आरम्भ हो ही जाता क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने हितों की पूर्ति में लगे थे। कम्पनी को कठपुतली चाहिए थी लेकिन मिला एक योग्य हाकिम।

१७६४ युद्ध से पूर्व ही कटवा, गीरिया, उदोनाला, की लडाइयों में नवाब हार चुका था उसने दर्जनों षड्यन्त्रकारियों को मरवा दिया (वो मीर जाफर का दामाद था और जानता था कि सिराजुद्दौला के साथ क्या हुआ था।)

अवध, मीर कासिम, शाह आलम का गठ जोड़

मीर कासिम ने अवध के नवाब से सहायता की याचना की, नवाब शुजाउदौला इस समय सबसे शक्ति शाली था। मराठे पानीपत की तीसरी लड़ाई(1761) से उबर नहीं पाए थे, मुग़ल सम्राट तक उसके यहाँ शरणार्थी था, उसे अहमद शाह अब्दाली की मित्रता प्राप्त थी।

जनवरी १७६४ में मीर कासिम उससे मिला। उसने धन तथा बिहार के प्रदेश के बदले उसकी सहायता खरीद ली। शाह आलम भी उनके साथ हो लिया। किंतु तीनों एक दूसरे पर संदेह करते थे।

युद्ध के घातक परिणाम

22 अक्टूबर 1764 को बक्सर के युद्ध में हार मिलने के बाद मुगल सम्राट शाहआलम जो पहले ही अंग्रेजों से मिला हुआ था, अंग्रेजों से संधि कर उनकी शरण में जा पहुंचा। वहीं अवध के नवाब शुजाउदौला और अंग्रेजों के बीच कुछ दिन तक लड़ाईयां हुईं लेकिन लगातार परास्त होने की वजह से शुजाउदौला को भी अंग्रजों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी।

वहीं इलाहाबाद की संधि के बाद जहां मुगल बादशाह शाहआलम को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को उड़ीसा, बिहार, बंगाल का राजस्व और दीवानी कंपनी के हाथों के हाथों सौंपना पड़ा। वहीं अवध के नवाब शुजाउदौला को भी अंग्रेजों से हुई संधि के मुताबिक करीब 60 लाख रुपए की रकम इस युद्ध में हुए नुकसान के रुप में अंग्रजों को देनी पड़ी।

इलाहाबाद का किला और कड़ा का क्षेत्र छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीरजाफर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र नज्मुदौला को बंगाल का नवाब बना दिया। इसके अलावा गाजीपुर और पड़ोस का क्षेत्र अंग्रेजों को देना पड़ा। वहीं बक्सर के युद्ध में हार के बाद किसी तरह जान बचाते हुए मीरकासिम भागने में कामयाब रहा लेकिन बंगाल से अंग्रेजों का शासन खत्म करने का सपना उसका पूरा नहीं हो पाया।

वहीं इसके बाद वह दिल्ली चला गया और यहीं पर उसने अपना बाकी का जीवन बेहद कठिनाइयों के साथ गुजारा। वहीं 1777 ईसवी के आसपास उसकी दिल्ली के पास ही मृत्यु हो गई। हालांकि उसकी मृत्यु के कारणों का खुलासा नहीं हो सका है। कुलमिलाकर बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रजों की शक्ति और भी अधिक बढ़ गई, जिसका दुष्परिणाम भारत की राजनीति पर पड़ा।

ज्यादातर राज्यों के शासक अंग्रेजों पर निर्भर रहने लगे और धीमे-धीमे भारत का सामाजिक, नैतिक, राजनैतिक और आर्थिक मूल्यों का पतन होने लगा और अंतत: अंग्रेज पूरी तरह से भारत को जीतने में सफल होते चले गए और फिर भारत गुलामी की बेडियों में बंध गया और अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचारों का शिकार हुआ।

इलाहाबाद की सन्धि

बक्सर के युद्ध की समाप्ति के बाद क्लाइव ने मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ क्रमश: इलाहाबाद की प्रथम एवं द्वितीय के संधि की।

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