Plastic bag benefits and disadvantages hindi language
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वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।
उपर्युक्त कथन कि प्रकृति ईश्वर की अनुपम देन है को संजोए रखना समाज का कर्तव्य बन जाता है। अत: मानव समाज को पॉलीथीन से होने वाले प्रदूषण के बचाव के लिये बढ़ चढ़ कर आगे आना होगा और अपने-अपने स्तर पर इससे निपटने के लिये सहभागी होना होगा। इसमें चाहे बच्चें हों या बूढ़े, स्त्री हो या पुरूष शिक्षित हो या अशिक्षित अमीर हो या गरीब, शहरवासी हो या गाँववासी सभी को इससे निजात पाने के लिये सहृदय कार्य करना होगा। परिवार के बड़े सदस्य स्वयं पॉली का प्रयोग न करें साथ ही सभी दूसरे सदस्यों को भी इसका प्रयोग करने से रोकें। साथ ही आस-पास के लोगों को भी इसके विषय में जानकारी दें तो यह सबसे बड़ा कदम होगा इसके निवारण में। यदि बाजार खरीदारी करने जाएँ तो अपने साथ जूट या कपड़े निर्मित थैले लेकर जाएँ और यदि दुकानदार पॉली में सामान दें तो उनको भी इसका प्रयोग करने से रोकें और पॉली का बहिष्कार करें। यदि उपभोगता ही इसका भोग करना बंद कर दें तो इसकी जरूरत दिन प्रति दिन कम होती चली जाएगी और एक समय ऐसा भी आएगा जब पॉलीथीन का पूरे वातावरण से सफाया हो जाएगा। सरकारी तंत्र को भी चाहिए कि वह इस निर्माण में लगी इकाइयों को बंद करें।
महिलाएँ विशेषकर पॉलीथीन रूपी जहर को फैलाने से रोक सकती हैं क्योंकि महिला शक्ति की प्रतिमूर्ति है। वह रचनात्मक प्रकृति की होती है। घर बच्चों व समाज की निर्मात्री होती हैं। इसलिये वह अपनी प्रवृत्तिनुसार वह पॉलीथीन प्रदूषण निवारण में रचनात्मक कार्य कर सकती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी का चिपको आन्दोलन है जिसमें महिलाओं ने वृक्षों से लिपटकर इनको कटने से बचाया और यह एक मिसाल बन गई महिला शक्ति की। महिलाओं के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को चाहे उसका कोई भी कार्य क्षेत्र हो, इस पॉलीथीन रूपी बीमारी से छुटकारा पाने के लिये अपना योगदान करना होगा। इसमें योगी, साधक, पुजारी, पादरी, मौलवी, समाज सुधारक, समाजसेवी संस्थाएं सभी को अपना योगदान कर इससे निजात पानी होगी तभी हम पर्यावरण को स्वच्छ एवं शुद्ध रख पाएँगे और अपने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ वातावरण देने में सक्षम होंगे। हम सरकारी तंत्र से भी यही आग्रह करना चाहेंगे कि पॉलीथीन का कम से कम प्रयोग करें और पॉली बनाने वाली इकाइयों को कम करें। इस प्रकार प्रकृति की गरिमा बनी रहेगी और जीव-जन्तु तथा पेड़ पौधे स्वस्थ एवं प्रदूषण मुक्त रहेंगे।
Answer:
प्रकृति एवं मानव ईश्वर की अनमोल एवं अनुपम कृति हैं। प्रकृति अनादि काल से मानव की सहचरी रही है। लेकिन मानव ने अपने भौतिक सुखों एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके साथ निरंतर खिलवाड़ किया और वर्तमान समय में यह अपनी सारी सीमाओं की हद को पार कर चुका है। स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है।
वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।
उपर्युक्त कथन कि प्रकृति ईश्वर की अनुपम देन है को संजोए रखना समाज का कर्तव्य बन जाता है। अत: मानव समाज को पॉलीथीन से होने वाले प्रदूषण के बचाव के लिये बढ़ चढ़ कर आगे आना होगा और अपने-अपने स्तर पर इससे निपटने के लिये सहभागी होना होगा। इसमें चाहे बच्चें हों या बूढ़े, स्त्री हो या पुरूष शिक्षित हो या अशिक्षित अमीर हो या गरीब, शहरवासी हो या गाँववासी सभी को इससे निजात पाने के लिये सहृदय कार्य करना होगा। परिवार के बड़े सदस्य स्वयं पॉली का प्रयोग न करें साथ ही सभी दूसरे सदस्यों को भी इसका प्रयोग करने से रोकें। साथ ही आस-पास के लोगों को भी इसके विषय में जानकारी दें तो यह सबसे बड़ा कदम होगा इसके निवारण में। यदि बाजार खरीदारी करने जाएँ तो अपने साथ जूट या कपड़े निर्मित थैले लेकर जाएँ और यदि दुकानदार पॉली में सामान दें तो उनको भी इसका प्रयोग करने से रोकें और पॉली का बहिष्कार करें। यदि उपभोगता ही इसका भोग करना बंद कर दें तो इसकी जरूरत दिन प्रति दिन कम होती चली जाएगी और एक समय ऐसा भी आएगा जब पॉलीथीन का पूरे वातावरण से सफाया हो जाएगा। सरकारी तंत्र को भी चाहिए कि वह इस निर्माण में लगी इकाइयों को बंद करें।
महिलाएँ विशेषकर पॉलीथीन रूपी जहर को फैलाने से रोक सकती हैं क्योंकि महिला शक्ति की प्रतिमूर्ति है। वह रचनात्मक प्रकृति की होती है। घर बच्चों व समाज की निर्मात्री होती हैं। इसलिये वह अपनी प्रवृत्तिनुसार वह पॉलीथीन प्रदूषण निवारण में रचनात्मक कार्य कर सकती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी का चिपको आन्दोलन है जिसमें महिलाओं ने वृक्षों से लिपटकर इनको कटने से बचाया और यह एक मिसाल बन गई महिला शक्ति की। महिलाओं के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को चाहे उसका कोई भी कार्य क्षेत्र हो, इस पॉलीथीन रूपी बीमारी से छुटकारा पाने के लिये अपना योगदान करना होगा। इसमें योगी, साधक, पुजारी, पादरी, मौलवी, समाज सुधारक, समाजसेवी संस्थाएं सभी को अपना योगदान कर इससे निजात पानी होगी तभी हम पर्यावरण को स्वच्छ एवं शुद्ध रख पाएँगे और अपने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ वातावरण देने में सक्षम होंगे। हम सरकारी तंत्र से भी यही आग्रह करना चाहेंगे कि पॉलीथीन का कम से कम प्रयोग करें और पॉली बनाने वाली इकाइयों को कम करें। इस प्रकार प्रकृति की गरिमा बनी रहेगी और जीव-जन्तु तथा पेड़ पौधे स्वस्थ एवं प्रदूषण मुक्त रहेंगे।