Hindi, asked by Hero9220, 9 months ago

Plastic ke upyog se uttpan samassya aur isse bachne ke upay batlate hue do mitron ke bich samvad

Answers

Answered by pargatsingh3509
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Pollution

Explanation:

Answered by neetubinku11
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Answer:-

प्लास्टिक ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। अमूमन हर चीज़ के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है, वो चाहे दूध हो, तेल, घी, आटा, चावल, दालें, मसालें, कोल्ड ड्रिंक, शर्बत, स्नैक्स, दवायें, कपड़े हों या फिर ज़रूरत की दूसरी चीज़ें सभी में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। बाज़ार से फल या सब्ज़ियां ख़रीदो, तो वे भी प्लास्टिक की ही थैलियों में ही मिलते हैं। प्लास्टिक के इस्तेमाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि टिन के डिब्बों, कपड़े के थैलों और काग़ज़ के लिफ़ाफ़ों के मुक़ाबले ये सस्ता पड़ता है। पहले कभी लोग राशन, फल या तरकारी ख़रीदने जाते थे, तो प्लास्टिक की टोकरियां या कपड़े के थैले लेकर जाते थे। अब ख़ाली हाथ जाते हैं, पता है कि प्लास्टिक की थैलियों में सामान मिल जाएगा। अब तो पत्तल और दोनो की तर्ज़ पर प्लास्टिक की प्लेट, गिलास और कप भी ख़ूब चलन में हैं। लोग इन्हें इस्तेमाल करते हैं और फिर कूड़े में फेंक देते हैं। लेकिन इस आसानी ने कितनी बड़ी मुश्किल पैदा कर दी है, इसका अंदाज़ा अभी जनमानस को नहीं है।

दरअसल, प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक़ देश में सबसे ज़्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों से आता है। साल 2015-16 में करीब 900 किलो टन प्लास्टिक बोतल का उत्पादन हुआ था। राजधानी दिल्ली में अन्य महानगरों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। साल 2015 के आंकड़ों की मानें, तो दिल्ली में 689.52 टन, चेन्नई में 429.39 टन, मुंबई में 408.27 टन, बेंगलुरु में 313.87 टन और हैदराबाद में 199.33 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। सिर्फ़ दस फ़ीसद प्लास्टिक कचरा ही रि-साइकिल किया जाता है, बाक़ी का 90 फ़ीसद कचरा पर्यावरण के लिए नुक़सानदेह साबित होता है।

रि-साइक्लिंग की प्रक्रिया भी प्रदूषण को बढ़ाती है। रि-साइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो ज़मीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी और भूगर्भीय जल विषैला बन सकता है। जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रि-साइकिलिंग इकाइयां नहीं लगी होतीं उनमें रि-साइकिलिंग के दौरान पैदा होने वाले विषैले धुएं से वायु प्रदूषण फैलता है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जो सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता। इसे अगर मिट्टी में छोड़ दिया जाए, तो भूगर्भीय जल की रिचार्जिंग को रोक सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक मूल रूप से नुक़सानदेह नहीं होता, लेकिन प्लास्टिक के थैले अनेक हानिकारक रंगों, रंजक और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं, जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिए किया जाता है। इनमें से कुछ रसायन कैंसर को जन्म दे सकते हैं और कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी जो धातुएं होती हैं, वो सेहत के लिए बेहद नुक़सानदेह हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और दिल का आकार बढ़ सकता है। लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है।

हालांकि पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एंड यूसेज़ रूल्स-1999 जारी किया था। इसे 2003 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1968 के तहत संशोधित किया गया है, ताकि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन सही तरीक़े से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की थी, मगर इसके बावजूद हालात वही 'ढाक के तीन पात' वाले ही हैं।

हालांकि दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में पॉलीथिन और प्लास्टिक से बनी सामग्रियों पर रोक लगाने का ऐलान किया जा चुका है। इसका उल्लंघन करने पर जुर्माने और क़ैद का प्रावधान भी है। प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाली समस्याएं ज़्यादातर कचरा प्रबंधन प्रणालियों की ख़ामियों की वजह से पैदा हुई हैं। प्लास्टिक का यह कचरा नालियों और सीवरेज व्यवस्था को ठप कर देता है। इतना ही नहीं नदियों में भी इनकी वजह से बहाव पर असर पड़ता है और पानी के दूषित होने से मछलियों की मौत तक हो जाती है। नदियों के ज़रिये प्लास्टिक का ये कचरा समुद्र में भी पहुंच रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल तकरीबन 80 लाख टन कचरा समंदरों में मिल रहा है। समंदरों में जो प्लास्टिक कचरा मिल रहा है, उसका तक़रीबन 90 फ़ीसद हिस्सा दस नदियों से आ रहा है, जिनमें यांग्त्जे, गंगा, सिंधु, येलो, पर्ल, एमर, मिकांग, नाइल और नाइजर नदियां शामिल हैं। इनमें से आठ नदियां एशिया की हैं। इनमें सबसे ज़्यादा पांच नदियां चीन की, जबकि दो नदियां भारत और एक अफ़्रीका की है। चीन ने 46 शहरों में कचरे को क़ाबू करने का निर्देश जारी किया है, ताकि नदियों के प्रदूषण को कम किया जा सके। प्लास्टिक पशुओं की मौत का भी सबब बन रहा है। कूड़े के ढेर में पड़ी प्लास्टिक की थैलियों को खाकर आवारा पशुओं की बड़ी तादाद में मौतें हो रही हैं।

प्लास्टिक के कचरे की समस्या से निजात पाने के लिए प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट से बने थैलों का इस्तेमाल ज़्यादा से ज़्यादा किया जाना चाहिए। साथ ही प्लास्टिक कचरे का समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए। देश में सड़क बनाने और दीवारें बनाने में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है। प्लास्टिक को इसी तरह अन्य जगह इस्तेमाल करके इसके कचरे की समस्या से निजात पाई जा सकती है। बहरहाल, प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए बेहद ज़रूरी है कि इसके प्रति जनमानस को जागरूक किया जाए, क्योंकि इस मुहिम में जनमानस की भागीदारी बहुत ज़रूरी है। इसके लिए जन आंदोलन चलाया जाना चाहिए।

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