PLEASE CAN ANYONE PROVIDE ME LEKHAK PARICHAY OF SHIVPUJAN SHAHY WITH THE FOLLING POINTS MENTIONED
1) NAAM
2) JAANM
3) MRYTU
4) PRAMUKH RACHNAYIAN
5) BHASAHA SHALLI
HOPE THIS HELPS!!!
THUMBS UP PLEASE
Answers
Answered by
0
शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में 'लहेरियासराय' (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
bhasa sailly
शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्यसाहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी भाषाबड़ी सहज थी। इन्होंने उर्दू के शब्दों का प्रयोगधड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों केसन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्शकरने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अलंकार प्रधान अनुप्रास बहुल भाषा काभी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सीछटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इसपद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहायके गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है।शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न हैऔर यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँउपलब्ध होती हैं।
इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में 'लहेरियासराय' (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
bhasa sailly
शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्यसाहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी भाषाबड़ी सहज थी। इन्होंने उर्दू के शब्दों का प्रयोगधड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों केसन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्शकरने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अलंकार प्रधान अनुप्रास बहुल भाषा काभी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सीछटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इसपद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहायके गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है।शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न हैऔर यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँउपलब्ध होती हैं।
Similar questions