Please explain me plz 2morrow is my exam
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hi
श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज कहते हैं,हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुमारे संग,तुमारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी वाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भोतिक जगत में प्राप्त होता है उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है | परन्तु यह हमें गुरु से ज्ञान प्राप्ति के पछ्चात ही पता चलता है | जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते के हम कौन हैं ? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है ? तब तक हमारे संशयों का नाश नहीं हो सकता | परन्तु यह सब गुरु के बिना संभव नहीं |
गुर बिनु घोरु अंधारु गुरू बिनु समझ न आवै ॥
गुर बिनु सुरति न सिधि गुरू बिनु मुकति न पावै ॥
श्री गुरु राम दास जी कहते हैं कि गुरु के बिना अंधेरा है | गुरु के बिना न हमें सत्य की समझ ही आ सकती है और न ही चित को स्थिर कर किसी प्राप्ति को ही सिद्ध कर सकते हैं | न ही मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है| आज मनुष का जीवन घने अंधकार से ग्रसित है और गुरु की प्राप्ति के बिना क्या स्थिति होती है|
जिना सतिगुरु पुरखु न भेटिओ से भागहीण वसि काल ॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि विचि विसटा करि विकराल
जिस व्यक्ति ने सतगुरु पुर्ष की प्राप्ति नहीं की | वह भाग्यहीन समय के बंधन में फंस जाते हैं | उन्हें जन्म-मरण के भयानक कष्ट को भोगना पढ़ता है | आवागमन की विष्ट रुपी गंदगी के कष्टों को झेलना पढ़ता है| एस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की खोज करे,जो उसी समय हमारे घट में ईश्वर का दर्शन करवा दे तभी हमारा जीवन सार्थक होगा.|
hope this helps!#
please mark as brainliest,
श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज कहते हैं,हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुमारे संग,तुमारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी वाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भोतिक जगत में प्राप्त होता है उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है | परन्तु यह हमें गुरु से ज्ञान प्राप्ति के पछ्चात ही पता चलता है | जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते के हम कौन हैं ? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है ? तब तक हमारे संशयों का नाश नहीं हो सकता | परन्तु यह सब गुरु के बिना संभव नहीं |
गुर बिनु घोरु अंधारु गुरू बिनु समझ न आवै ॥
गुर बिनु सुरति न सिधि गुरू बिनु मुकति न पावै ॥
श्री गुरु राम दास जी कहते हैं कि गुरु के बिना अंधेरा है | गुरु के बिना न हमें सत्य की समझ ही आ सकती है और न ही चित को स्थिर कर किसी प्राप्ति को ही सिद्ध कर सकते हैं | न ही मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है| आज मनुष का जीवन घने अंधकार से ग्रसित है और गुरु की प्राप्ति के बिना क्या स्थिति होती है|
जिना सतिगुरु पुरखु न भेटिओ से भागहीण वसि काल ॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि विचि विसटा करि विकराल
जिस व्यक्ति ने सतगुरु पुर्ष की प्राप्ति नहीं की | वह भाग्यहीन समय के बंधन में फंस जाते हैं | उन्हें जन्म-मरण के भयानक कष्ट को भोगना पढ़ता है | आवागमन की विष्ट रुपी गंदगी के कष्टों को झेलना पढ़ता है| एस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की खोज करे,जो उसी समय हमारे घट में ईश्वर का दर्शन करवा दे तभी हमारा जीवन सार्थक होगा.|
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Leharmukhi:
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