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of chaupai
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on 07-02-2019
रोला एक छंद है जिसके प्रत्येक चरण मे ११+१३ के विश्राम से २४ मात्राएँ होती है । किसी किसी का मत हैं, इसके अंत में दो गुरु अवश्य आने चाहिए, पर यह सर्वसंमत नहीं है ।
‘छंद प्रभाकर’ के रचयिता जगन्नाथ प्रसाद भानु के अनुसार
रोले का आंतरिक रचना क्रम है
विषम = ४+४+३ ३+३+२+३
सम = ३+२+४+४ व ३+२+३+३+२
ऐसा भी कह सकते हैं के दो सोरठा मिलकर रोला बनता है
उदहारण :-
भाव छोड़ कर, दाम, अधिक जब लेते पाया।
शासन-नियम-त्रिशूल झूल उसके सर आया॥
बहार आया माल, सेठ नि जो था चांपा।
बंद जेल में हुए, दवा बिन मिटा मुटापा॥ - ओमप्रकाश बरसैंया ओमकार
उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
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