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दो ठेकेदार थे और दोनों के पास दस दस मजदूर काम करते थे. एक मज़दूर को 100 रुपये दिहाड़ी देने का चलन था. एक ठेकेदार ने मजदूरों को दिल से काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से उनकी दिहाड़ी बढ़ा कर 110 रुपये कर दी. वहीँ दूसरे ठेकेदार ने उनकी मज़दूरी को घटा कर 90 रुपये कर दिया और इस तरह बचाए गए 100 रुपये दिन में सब से अधिक काम करने वाले मजदूर को इनाम में देने की घोषणा कर दी. इनाम तो एक को मिलना होता था परन्तु उसे पाने की होड़ में दसों मजदूर दिन भर अपना खून पसीना बहाने लगे. इससे इनाम देने वाले ठेकेदार का काम कम समय और कम लागत में पूरा हो गया.
दूसरे ठेकेदार का काम भी कुछ कम मुनाफे के साथ समय रहते पूरा हो गया. पहले ठेकेदार ने मज़दूरी बढ़ा, कम लाभ कमा कर भलाई का काम किया जबकि दूसरे ने मक्कारी कर मज़दूरों को लालच में फंसा उनका शोषण किया. दोनों ठेकेदारों का धर्म और भगवान पर पूरा विश्वास था. लेकिन धर्म के मूल में मानवता ही होती है. ऐसे में पहले ठेकेदार का धर्म सच्चा और दूसरे का धर्म मात्र दिखावा था. आजकल देश मे बहुत से लोग दूसरे ठेकेदार की तरह मानवता को भूल नकली धार्मिक बने हुए हैं.
मजदूर को जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन उसे पेट भर खाना नसीब नहीं होता. उनकी इस बेबसी का फायदा बहुत से ठेकेदार उठाते हैं. हर रोज़ मजदूरी की लिए भटकने की बजाय मजबूरी में ठेकेदारों के यहां नियमित काम मिलने के लालच में कम मजदूरी पर उनको काम करते अक्सर देखा जा सकता हैं. सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी का क़ानून तो बना दिया है. परन्तु इसका लाभ असंघठित क्षेत्र के मज़दूरों को नहीं मिल पा रहा. ऐसे मे जब तक देश के लोग पूजा पाठ के साथ मानवता को नहीं अपनाते, बेबस मज़दूरों और गरीबों का शोषण होता रहेगा.
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Happy belated Independence Day.
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