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इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव-जीवन ओर उसके व्यवहारों में भावना का प्रमुख एंव महत्वपूर्ण स्थान है। उसके बिना रहा नहीं जा सकता, जीवन चल नहीं सकता। फिर भी यह चरम, अकाटय एंव व्यावहारिक सत्य है कि मानव-जीवन और समाज में भावना ही सब कुछ नहीं है। केवल भावना के सहारे मनुष्य जीवित रह नहीं सकता, संसार चल नहीं सकता।
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Explanation:
संसार में असंख्य प्राणी हैं। उनमें सर्वाधिक और विशिष्ट महत्व केवल मनुष्य नामक प्राणी को ही प्राप्त है। इसके मुख्य दो कारण स्वीकार किए जाते या किए जा सकते हैं। एक तो यह कि केवल मनुष्य के पास ही सोचने-समझने के लिए दिमाग और उसकी शक्ति विद्यमान है, अन्य प्राणियों के पास नहीं। वे सभी कार्य प्राकृतिक चेतनाओं और कारणों से करते हैं, जबकि मनुष्य कुछ भी करने से पहले सोच-विचार करता है। दूसरा प्रमुख कारण है मनुष्य के पास विचारों के साथ-साथ भावना और भावुकता का भी होना या रहना। भावना नाम की कोई वस्तु मानवेतर प्राणियों के पास नहीं हुआ करती। भावनाशून्य रहकर वे सिर्फ प्राकृतिक नियमों से प्रेम, भय आदि का प्रदर्शन किया करते हैं। स्पष्ट है कि ये ही वे कारण हैं, जो मानव को सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी सिद्ध करते हैं।
मानव जीवन में जो कुछ भी सुंदर, अच्छा और प्रेरणादायक है, वह भावनाओं के कारण या भावना का ही रूप है। मानव-जीवन में जो भिन्न प्रकार के संबंध और पारस्परिक रिश्ते-नाते हैं, उनका आधारभूत कारण भी भावना-प्रवणता ही है। किसी गांव, कस्बे, शहर, प्रांत, और देश की माटी से मनुष्य जो प्यार करता है, उसके लिए प्राणों तक को न्यौछावर कर देता या कर देना चाहता है, वह भावनाओं का संबंध, लगाव और प्रेरणा का ही परिणाम है। घर-द्वार से प्रेम, भाई-बहन या माता-पिता से स्नेह-सम्मान, जाति या राष्ट्र-प्रेम आदि अपनत्व के जितने भी स्वरूप हैंख् उन सबके मूल में भवना ही सक्रिय दिखाई देती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव-जीवन ओर उसके व्यवहारों में भावना का प्रमुख एंव महत्वपूर्ण स्थान है। उसके बिना रहा नहीं जा सकता, जीवन चल नहीं सकता। फिर भी यह चरम, अकाटय एंव व्यावहारिक सत्य है कि मानव-जीवन और समाज में भावना ही सब कुछ नहीं है। केवल भावना के सहारे मनुष्य जीवित रह नहीं सकता, संसार चल नहीं सकता। कोरी भावना हमेशा भडक़ाने और पथभ्रष्टट करने वाली होती है। वह व्य िकत को कर्म-विमुख करके भाज्य और भगवान के सहारे छोड़ देती है और तब व्यक्ति को कर्म-विमुख करके भाज्य और भगवान के सहारे छोड़ देती है और तब जीवन सार्थक न होकर नष्ट हो जाया करता