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भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध:
आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा का युग है । विज्ञान अथवा तकनीकी क्षेत्र में मनुष्य की अभूतपूर्व सफलताओं ने उसकी इच्छाओं व आकांक्षाओं को पंख प्रदान कर दिए हैं । परंतु बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें जीवन में वांछित वस्तुएँ प्राप्त होती हैं अथवा अपने जीवन से वे संतुष्ट होते हैं ।
हममें से प्राय: अधिकांश लोग जिन्हें मनवांछित वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती हैं वे स्वयं की कमियों को देखने के स्थान पर अपने भाग्य को दोष देकर मुक्त हो जाते हैं । वास्तविक रूप में भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो स्वयं पर विश्वास करते हैं । वे जो अपने पुरुषार्थ के द्वारा अपनी कामनाओं की पूर्ति पर आस्था रखते हैं, वही व्यक्ति जीवन में सफलता के मार्ग पर अग्रसित होते हैं ।
भाग्य और पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं । पुरुषार्थी अथवा कर्मवीर व्यक्ति जीवन में आने वाली बाधाओं व समस्याओं को सहजता से स्वीकार करते हैं । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे विचलित नहीं होते हैं अपितु साहसपूर्वक उन कठिनाइयों का सामना करते हैं । जीवन संघर्ष में वे निरंतर विजय की ओर अग्रसित होते हैं और सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचते हैं।
”दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,
मरता है जो, एक ही बार मरता है ।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे !
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे !”