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वन का महत्व प्रत्येक युग में छोटे-बड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए अवश्य रहा है ।सच तो यह है कि धन के अभाव में व्यक्ति का किसी भी तरह से जीवित रह पाना संभव नहीं हुआ करता ।आखिर इतना धन तो हर व्यक्ति को चाहिए यही कि वह अपना अपने घर परिवार वालों बच्चों का निश्चिंत होकर गुजर बसर कर सके ।
रोटी कपड़ा और मकान जैसी प्राथमिक एवं जरूरी आवश्यकताएं पूरी कर सके ।इतनी धन की आवश्यकता को अनिवार्य बताते हुए कबीर जैसे ज्ञानी संसार त्यागी और वैरागी संत को भी भगवान से प्रार्थना करते हुए कहना पडा कि
"साई इतना दीजिए, जामें कुटुम
समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ , साधू न भूखा
जाय ॥ "
अतः यह तो स्पष्ट है कि जीवन जीने के लिए तो एक तरह की अनिवार्यता है ।शरीर रहेगा तभी व्यक्ति धर्म कर्म आदि सभी तरह के पुरुषार्थ कर सकेगा । शरीररक्षा के लिए अन्न -वस्त्र आदि आवश्यक है ।अन्यथा कुछ भी पास अपना एवं शरीर की रक्षा कर पाना कतई संभव नहीं । इस दृष्टि से धन का अर्जन है या त्याज्य कतई नहीं माना गया ।
बहन को बुरा या अनिष्टकारक सब मान लिया जाता है कि जब वह संसार की अन्य सभी बात तो रिश्ते नाते सगे संबंधी और मानवीयता से भी मुंह मोड कार सर्वोच्च महत्व पा लेता है ।जब धन कोमानवता और धर्म , बल्कि भगवान से भी उच्च सिहासन पर विराजमान कर दिया जाता है तब धन - धन न रह कार एक तरह का बब्बल एवं अन्य कई तरह के बवालो का जन्मदाता भी बन कर अपने साथ साथ दूसरों का जीवन भी सामान्यतया दूभर कर दीया करता है ।ऐसा धन निन्द्य है।
दादा बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया ।
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