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डीएवी संस्था की स्थापना के पीछे क्या भावना थी यह भावना क्यों पैदा hui. Take help from picture.
Answers
पाठ संख्या -17 ( डी.ए.वी.सँस्थाएँ )
प्रश्न-1 डीएवी संस्था की स्थापना के पीच्छे क्या भावना थी ? और यह भावना क्यों पैदा हुई ? स्पष्ट कीजिए |
उत्तर-1 डीएवी संस्था की स्थापना के पीछे यह भावना थी कि- उन दिनों भारत केवल में इसाई शिक्षण सँस्थाएँ ही चलती थीं जिनका भारतीय संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं था और न ही ये संस्थाएँ कोई भारतीय चेतना उत्पन्न कर पा रहीं थीं अत: विद्वत शिरोमणि महात्मा हंसराज जी तथा अन्य आर्य सज्जनों द्वारा निर्णय लिया गया कि- हम सब मिलकर एक ऐसी संस्था खोंलें जिसमें पूर्व और पश्चिम की भाषाओं को पढ़ाया जाए तथा संस्कृति एवं विज्ञान का मिला-जुला रूप हो |अत: (डी.ए.वी.) यह संस्था इस उद्देश्य को पूरा करती है |
प्रश्न-2 डीएवी शिक्षण संस्था की स्थापना के समय आर्य नेताओं की दृष्टि की तीन बातों की ओर शुरू से ही रही ? इसकी पूर्ति कैसे की गई ?
उत्तर-2 डीएवी शिक्षण संस्था की स्थापना के समय आर्य नेताओं की दृष्टि निम्नलिखित तीन बातों की ओर शुरू से ही रही थी |
1.आत्मनिर्भरता= वर्त्तमान में डी.ए.वी.शिक्षण सँस्थाएँ देश की सबसे बड़ी गैर स्वावलम्बी शिक्षण संस्था है | जून सन् 1886 में लाहौर में पहला डी.ए.वी.स्कूल और फिर बाद में डी.ए.वी. कालेज खोला गया | कभी भी सरकार से कोई सहायता नहीं ली गई |अत:यह संस्था पूर्णतया आत्मनिर्भरहै|
2.स्वार्थत्याग = इस संस्था से जुड़े लोगों में त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है |स्वार्थ त्याग इस संस्था का आदर्श रहा है |महात्मा हंसराज जी नें आजीवन सदस्य बनकर मात्र 75 रूपये मासिक या अवैतनिक कार्य करके इस संस्था की सेवा की है |यह संस्था वख्शी रामरतन, प्रिंसिपल मेहरचन्द जी महाजन, पंडित राजाराम एवं त्यागशील महानुभावों के शिरोमणि महात्मा हंसराज जी को कभी नहीं भूलेगी |
3.मितव्ययिता = मितव्ययिता की दृष्ट से डी.ए.वी. सस्थाएँ आदर्श मानी जाती हैं जनता द्वारा दिए गए दान से आज भी बिना किसी फ़ालतू खर्च के ये सँस्थाएँ अपने उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम हैं | अपने इन्हीं गुणों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में परंपरागत वैदिक शिक्षा के साथ साथ आधुनिक शिक्षा देनें में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं |
प्रश्न-3 डीएवी संस्था में किन-किन महानुभावों का विशेष हाथ रहा था ?
उत्तर-3डीएवी संस्था में निम्नलिखित महानुभावों का विशेष हाथ रहा है
जैसे – त्यागी तपस्वी आर्यरत्न महात्मा हंसराज जी एवं बख्शी रामरतन , पंडित राजाराम, प्रिंसिपल मेहरचन्द महाजन, आदि का विशेष हाथ रहा है |