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poem on nature in hindi
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प्रकृति
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज
नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान
हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार II
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पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओI
सागर कहता है लहराकर ,
मन में गहराई लाओ I
समझ रहे हो क्या कहती है ,
उठ-उठ गिर कर तरल तरंग I
भर लो, भर लो अपने मन में ,
मीठे-मीठे मृदुल उमंग I
पृथ्वी कहती, धैर्य न छोड़ो,
कितनी ही हो सर पर भारI
नभ कहता है ,फैलो इतना ,
धक लो तुम सारा संसार II
तुम भी ऊँचे बन जाओI
सागर कहता है लहराकर ,
मन में गहराई लाओ I
समझ रहे हो क्या कहती है ,
उठ-उठ गिर कर तरल तरंग I
भर लो, भर लो अपने मन में ,
मीठे-मीठे मृदुल उमंग I
पृथ्वी कहती, धैर्य न छोड़ो,
कितनी ही हो सर पर भारI
नभ कहता है ,फैलो इतना ,
धक लो तुम सारा संसार II
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