PLEASE ITS URGENT!!!
WRITE A ESSAY ON "इस्किसवी साधि का विध्यालय"
THANKS IN ADVANCED
Answers
Answer:
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले पांच साल से देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को लेकर विचारधाराओं के खूंटे से बंधी एक बहस चल रही है. इस मामले की तह तक पहुंचने के लिए विश्लेषण की ज़हमत नहीं उठाई गई. इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा करने के बजाय अपनी-अपनी विचारधारा के हिसाब से फैसला सुना दिया गया. इसमें तथ्यों की अनदेखी हुई और निजी तजुर्बों के आधार पर राय बना ली गई. लोकतांत्रिक संस्थाओं को लेकर चल रहे इस विमर्श पर राजनीतिक निष्ठा हावी है और उसी से इस बहस की दिशा तय हो रही है. अगर कोई सत्तारूढ़ बीजेपी गठबंधन सरकार का सहयोगी या समर्थक है तो उसे लगता है कि सरकार सांस्थानिक ढांचे में बदलाव करके उसकी ग़लतियों को दूर कर रही है. योजना आयोग की जगह लेने वाले नीति आयोग के मामले में ऐसा ही हुआ. योजना आयोग संवैधानिक संस्था थी, लेकिन नीति आयोग ने उससे कहीं अधिक शक्तियां हासिल कर लीं. दूसरी तरफ, कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के सदस्य या मोदी विरोधियों का आरोप रहा है कि ये सारे कदम संस्थाओं को बर्बाद करने के लिए उठाए जा रहे हैं. यह पिछले कई दशकों से चल रहे देश के सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण का नतीजा है, जो हाल के वर्षों में चरम पर पहुंच गया है.
मौजूदा सरकार को संस्थानों को बर्बाद करने वाले और आंकड़ों में हेराफेरी करने वाला बताया जा रहा है. उसे न्यायपालिका, विपक्ष, चुनाव आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और विश्वविद्यालयों की तरफ से विरोध का सामना करना पड़ा. वैसे, सरकार इस मामले में सारे आरोपों के जवाब दे चुकी है, लेकिन संस्थाओं को लेकर मोदी सरकार के कदम का मतलब लोग अपनी-अपनी विचारधारा और राजनीतिक खेमेबाज़ी के आधार पर निकाल रहे हैं. इसके बावजूद इस मुद्दे पर राजनीतिक विमर्श की जरूरत है क्योंकि देश और नागरिकों के भविष्य के लिए ये संस्थाएं काफी अहमियत रखती हैं. इस रिपोर्ट में लोकतांत्रिक संस्थाओं के बुनियादी सिद्धांतों का विश्लेषण किया गया है जो ऐसी किसी बहस की पूर्वशर्त है.
सरकार के कामकाज के तरीकों पर संदेह की धुंध छाई हुई है. विपक्ष या सिविल सोसायटी की तरफ से इस पर किसी भी विरोध को सरकार की तरफ से पूरी तरह से खारिज कर दिया जाता है. असल में इस धुंध के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही ज़िम्मेदार हैं. वे सत्तारूढ़ सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने के लिए इसका इस्तेमाल करती आई हैं. इस मुद्दे पर ईमानदार बहस के लिए संस्थानों को बनाने और उन्हें टिकाऊ बनाने के बुनियादी सिद्धांतों का विश्लेषण करना होगा, मसलन — सुप्रीम कोर्ट में न्यायपालिका के कथित तौर पर सरकार का साथ देने के आरोप, आरबीआई के कामकाज को लेकर टकराव, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (सीबीआई) में नियुक्तियां और उसका ढांचा या रोज़गार के आंकड़े जारी न करना.
hope it's helpful to you ✌️✌️✌️✌️✌️✌️
please mark me as brainlist and mark thanks