Please please please anyone please send me a paragraph on SAMRAT ASHOKA' S LIFE HISTORY in Hindi please
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अशोक मौर्य जो साधारणतः अशोका और अशोका- एक महान – Samrat Ashoka The Great के नाम से जाने जाते है. वे मौर्य राजवंश के एक भारतीय सम्राट थे, वे भारत के महान शक्तिशाली समृद्ध सम्राटो में से एक थे.
पूरा नाम – अशोक बिंदुसार मौर्य.
जन्मस्थान – पाटलीपुत्र.
पिता – राजा बिंदुसार.
उस समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहोच गया था. उनके साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र(मगध, आज का बिहार) और साथ ही उपराजधानी तक्सिला और उज्जैन भी थी.
उस समय पाटलिपुत्र में अराजकता और मारकाट का वातावरण व्याप्त था. अशोक ने अपने को कुशल प्रशासक सिध्द करते हुए तीन साल के भीतर ही राज्य में शांति स्थापित की. उनके शासनकाल में देश ने विज्ञान व तकनीक के साथ – साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की. उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी. चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गईं.
अशोक घोर मानवतावादी थे. वह रात – दिन जनता की भलाई के काम ही किया करते थे. उन्हें विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी. धर्म के प्रति कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे, कलिंग युध्द अशोका के जीवन का आखरी युध्द था, जिससे उनका जीवन को ही बदल गया.
अशोका और कलिंगा घमासान युध्द शुरु हुआ. जिसमे कलिंगा को परास्त किया जो इस से पहले किसी सम्राट ने नहीं किया था और ना ही कर पाया था. उस समय मौर्य साम्राज्य तब तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य माना जाता था. सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से कुशल और बेहतर प्रशासक तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता था. कलिंगा-अशोका युद्ध में 100000 से भी ज्यादा मृत्यु हुई और 150000 से भी ज्यादा घायल हुए. इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने उन्हें हिलाकर रख दिया. उन्होंने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है और जीवन में फिर कभी युध्द न करने का प्रण लिया. उन्होंने बौध्द धर्म अपना लिया और अहिंसा के पुजारी हो गये. उन्होंने देशभर में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए स्तंभों और स्तूपों का निर्माण कराया. विदेशों में बौध्द धर्म के विस्तार के लिए भिक्षुओं की तोलियां भेजीं. बुद्ध का प्रचार करने हेतु उन्होंने अपने रज्य में जगह-जगह पर भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमाये स्थापित की. और बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये.
बौध्द धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई. विदेशों में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में भारत से बाहर भेजा. सार्वजानिक कल्याण के लिये उन्होंने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गये हैं. नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे. भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देंन है. ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं. ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामुर्तियों की प्रतिकृति है.
किताब आउटलाइन ऑफ़ हिस्ट्री में अशोका में बारे में यह लिखा है की, “इतिहास में अशोका को हजारो नामो से जानते है, जहा जगह-जगह पर उनकी वीरता के किस्से है, उनकी गाथा पुरे इतिहास में प्रचलित है, वे एक सर्व प्रिय, न्यायप्रिय, दयालु और शक्तिशाली सम्राट थे. वे एक आकाश में चमकने वाले तारे की तरह है जो अकेला ही क्यू ना हो लेकिन चमकता जरुर है, और सतत चमकते ही जाता है, भारतीय इतिहास का यही चमकता तारा सम्राट अशोका है. वे सदैव लोगो के दिलो दिमाग में अपनी जगह बनाते रहे. और आज के आधुनिक भारत ने भी उनके 4 शेरो के चिन्ह को क़ानूनी तौर से अपनाया है. जिसे हम अशोक चिन्ह के नाम से भी जानते है.
अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती. एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उसका नाम अमर रहेगा. उन्होंने जो त्याग एवं कार्य किये वैसा अन्य कोई नहीं कर सका.