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किस तरह आखिर मैं हिंदी में आया
यह कहानी शमशेर बहादुर सिंह द्वारा लिखी गई एक ज्ञानवर्धक कहानी है ।
लेखक किसी बात से नाराज होकर 5 से ₹7 अपनी जेब में लेकर अचानक दिल्ली के लिए चल दिए । लेखक की रुचि पेंटिंग में थी । उसने पेंटिंग की शिक्षा लेने का विचार किया । पेंटिंग में लेखक के शौक को देखकर बिना फीस दिए उन्हें वहां दाखिला मिल गया । अभिलेखा के लिए करोल बाग में एक कमरा किराए पर लिया। और वहां से कनॉट प्लेस की क्लास मैं सुबह पहुंचने लगे । कभी-कभी बात ड्राइंग बनाता और कभी-कभी कविताएं भी लिखता था । कभी-कभी लेखक के भाई तेज बहादुर कुछ रुपए भेज देते थे । कई बार लेकर साइन बोर्ड पेंट करके कुछ कमा लेते थे ।
लेखक के साथ एक पत्रकार महोदय भी आकर रहने लगे । लेखक के एक कवि मित्र थे नरेंद्र शर्मा जो m.a. पास थे । दिल्ली में उनकी उनसे मुलाकात हुई । एक बार हरिवंश राय बच्चन उनके स्टूडियो में आए । क्लास खत्म हो जाने के कारण लेखक जा चुके थे । बच्चन जी लेखक के लिए एक नोट छोड़ गए थे । पर लेखक को पत्रों का जवाब ना देने की आदत थी । उसी पत्र की कृतज्ञता को प्रकट करने के लिए लेखक ने अंग्रेजी में कविता लिखी । इसके बाद लेखक देहरादून आकर अपनी ससुराल की दुकान पर कंपाउंड री सीखने लगे । उसी वर्ष गुरुवर बिठाने का प्रयत्न कर रहा था । लेखक ने अपना लिखा साॅनेट बच्चन जी को पोस्ट कर दिया । 1937 में बच्चन जी गर्मी की छुट्टी में देहरादून आए और बृजमोहन वक्त के यहां रुके । वह 1 दिन लेखक के यहां भी मेहमान बनकर गए ।
उस समय बच्चन जी की धूम का जमाना था । उस समय बच्चन जी की कविताएं बहुत ही चाव से बड़ी एवं सुनी जाती थी । उस वर्ष देहरादून में भयंकर आंधी आई थी । उन्हीं दिनों बच्चन जी की पत्नी का देहांत हुआ था । उनके मन मस्तिष्क में भी तूफान चल रहा था । एक बार की बात है कि तेज वर्षा होने के कारण किसी कुली के ना होने पर बच्चन जी बिस्तर को कंधे पर रखकर स्टेशन चले गए । लेखक को इलाहाबाद भी बच्चन जी ही ले गए थे । लेखक ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी ।
यह सन 1936 से 38 के बीच की घटनाएं हैं । बच्चन जी ने लेखक को m.a. करने की सलाह दी । बच्चन के पिता उनके लोकल गार्जियन बने । बच्चन जी ने एमए प्रिवियस और फाइनल दोनों का जिम्मा स्वयं ले लिया । उनकी योजना यह थी कि लेखक इसी तरह काम का आदमी बन जाए । वे लेखक को हर प्रकार की स्थिति में एक योग्य व्यक्ति बनाना चाहते थे । लेकिन लेखक भी तो नौकरी करना ही नहीं चाहता था । इसलिए उसने प्रवेश प्राप्ति के पश्चात भी पढ़ाई की तरफ से ध्यान नहीं दिया ।
हिंदू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में हरिवंश राय बच्चन ने लेखक को छात्रावास में स्थान दिलाया तो सुमित्रानंदन पंत ने उसे इंडियन प्रेस में अखबार में अनुवाद का काम दिलाया । अब लेखक ने सच्चे मन से हिंदी कविता लिखने का निश्चय किया । परंतु लेखक के घर में उर्दू भाषा का ही प्रयोग होता था । बच्चन जी लेखक के हिंदी पूनर्संस्कार के प्रमुख कारण बने । लेखक की कुछ रचनाएं "सरस्वती" और "चांद" पत्रिका में छप चुकी थी । लेखक को पंत और निराला से भोजपुर चाहन मिला । लेखक के परिवार में कभी भी हिंदी उर्दू अथवा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कोई विवाद ना हुआ था ।
Explanation:
लेखक हिंदी के विख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एवं सुमित्रानंदन पंत से मिली प्रेरणा और इलाहाबाद के दोस्तों से मिली प्रोत्साहन की वजह से ही हिंदी कविता की ओर आकर्षित हुए । अतः उसनेउसने निश्चय किया कि अब वह 1 वर्ष के अंदर हिंदी कविता के सिर्फ आदि का अध्ययन कर कविताएं लिखने लगेगा । बच्चन बच्चन जी ने उसे साॅनेट से से अलग 14 पंक्तियों का नया स्टैंजा बताया । लेखकलेखक ने उसी पद्धति पर एक कविता लिखने का प्रयास किया किंतु उसे लगा कि यह तो साॅनेट ही है । अतः उसने यह कविता बच्चन को नहीं दिखाई । इसके बाद लेखक ने निशा नियंत्रण कविता के आधार पर भी कविता लिखने का असफल प्रयास किया । उसकी इन कविताओं का पंत जी ने संशोधन भी किया लेकिन वह आज तक प्रकाशित नहीं हुई ।
बच्चन जी ने निशा नियंत्रण की कविताएं के रूप ने लेखक को अपनी और आकर्षित किया । लेखक का कविता लिखने का प्रयास निरर्थक नहीं गया । कोर्स की और ध्यान ना देने के कारण बच्चन जी दुखी थे । लेखक बच्चन जी के साथ गोरखपुर के एक कवि सम्मेलन में गया । सरस्वती में छपी एक कविता ने निराला जी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया । हिंदी के साहित्य प्रांगण में बच्चन जी उसे घसीट लाए थे । वैसे लेखक बच्चन जी से ही सदैव दूरी बनाए रखने का प्रयास करता था । उसका सहज , स्वाभाविक एवं सामान्य होना उसे भाता था । वह वह उन्हें असाधारण का कर उनकी मर्यादा काम नहीं करना चाहता ।
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