please tell bhavarth
क्षणभर रुककर विश्राम करो
क्यों नदी निरंतर बहती हो?
जब-जब मैंने देखा पाया
तुम दौड़-धूप में रहती हो।
अधयका चट्टानों की
लड़-लड़कर तोड़ दिया तुमने।
पर्वत समरस मैदान बने
रुख अपना मोड़ दिया तुमने।
लहरों पर लहर उठाती हो
तट-बंधों' से टकराती हो।
'संघर्ष स्रोत है. जीवन का
तुम हँस-हँसकर बतलाती हो।
ताकत को ताकत से काटा
कमज़ोरों को पुचकार दिया।
ऊँचे शिखरों पर वार किया
फसलों को चूमा, प्यार दिया।
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कवी कहना चाहता है नदी की तरह सदैव परिश्रम करते रहो
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