Please tell Kabir ke dohe
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Answer:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
Explanation:
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
–3–
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।
–4–
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन
Answer:कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित ( कबीर के दोहे मीनिंग इन हिंदी)
बुरा जो देखन मैं गया, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ: जब मेने इन संसार में स्पष्ट को ढूढा तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला जब मेने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली। दुसरो में अच्छा बुरा देखने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जनता। जो दुसरो में स्पष्ट ढूंढते है वास्तव में वहीँ सबसे बड़ी बुराई है।
पोथी पढ़ि जग जागरण, पंडित भया न कोय,
ढाई ओपर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: उच्च ज्ञान प्राप्त करने पर भी हर कोई विद्वान नहीं हो जाता है। अक्षर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसकी महत्त्व ना जान पाया, ज्ञान की करुणा को जो जीवन में न उतार पाया तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम के ज्ञान को जान गया, जिसने प्यार की भाषा को अपना लिया वह बिना अक्षर ज्ञान के विद्वान है। हो जाता है
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, सीतु आया फल होय।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियाँ में जो भी करना चाहते हैं वह धीरे-धीरे होता है अर्थात कर्म के बाद फल क्षणों में नहीं मिलता जैसे एक माली किसी पौधे को जब तक सो घड़े पानी नहीं देता तब तक ऋतू में फल नहीं होते। आता।
धीरज ही जीवन का आधार हैं, जीवन के हर दौर में धीरज का होना जरुरी है फिर वह छात्र जीवन हो, वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन हो। कबीर ने कहा है कि अगर कोई माली किसी पौधे को 100 घड़े पानी भी देता है, तो वह एक दिन में बड़ा नहीं होता और नाही बिन मौसम फल देता है। हर बात का एक निश्चित समय होता है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में धीरज का होना आवश्यक है।
जाति न पूछ साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल दो तरवार का, पड़ा रहन म्यान।
अर्थ: किसी भी व्यक्ति की जाति से उसके ज्ञान का बोध नहीं किया जा सकता है, किसीजन की प्रवणता का अनुमान भी उसके जाति से नहीं लगाया जा सकता है इसलिए किसी से उसकी जाति पूछने व्यर्थ है उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है। जैसे किसी तलवार का अपना महत्व है पर म्यान का कोई महत्व नहीं, म्यान महज़ उसका उपरी आवरण है जैसे जाति मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हे तराजू टोली के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ: जिसे बोल का महत्व पता है वह बिना शब्दों को तोले नहीं बोलता। कहते हैं कि कमान से बचना तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए उन्हें बिना सोचे-समझे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जीवन में जल्द ही बीत जाता है पर शब्दों के बाण जीवन को रोक देना है। इसलिए तनि में नियंत्रण और मिठास का होना जरुरी है।
चाहत मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,
किसको कुछ नहीं चाहिए
अर्थ: कबीर ने अपने इस दोहे में बहुत ही उपयोगी और समझने योग्य बात लिखी हैं कि इस दुनियाँ में जिस व्यक्ति को पाने की इच्छा हैं उससे उसे बात को पाने की ही चिंता हैं, मिल जाने पर उसे खो देने की चिंता हैं वे हर पल। बैलेन हैं जिनके पास खोलने को कुछ हैं लेकिन इस दुनियाँ में वही खुश हैं जिनके पास कुछ नहीं हैं, उसे चुनने का डर नहीं, उसे पाने की चिंता नहीं, ऐसे व्यक्ति ही इस दुनियाँ का राजा हैं।
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