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संसार में मनुष्य अनेक प्रकार के आनंद पाना चाहता है। उसके लिए सुंदर मकान, रूचिकर भोजन और आकर्षक वस्त्रों की इच्छा हमेशा बलवती रहती है। धन की राशि, राजाप्रसाद तथा अन्य भौतिक वस्तुएं उसके सुख के साधन हैं। सभी सुखों का मूल है- शरीर-सुख। सर्वप्रथम शरीर, इसके बाद और कुछ। यदि शरीर स्वस्थ नहीं हो सारा वैभव व्यर्थ है। स्वास्थ्य का ठीक रहना सब प्रकार की संपति प्राप्त करने के िलए आवश्यक है। सुख का आधार है-स्वास्थ्य। एक रोगी को राजमहल में नींद नहीं आ सकती, परंतु एक स्वस्थ श्रमिक सडक़ के किनारे भी गहरी नींद ले लेता है। अत: संसार में सबसे जरूश्री है स्वस्थ शरीर होना।
व्यायाम नियमित और निश्चित मात्रा में किया जाना चाहिए। प्राय: व्यायाम के लिए प्रात: और सांयकाल का समय उपयुक्त होता है। स्थान ऐसा हो, जहां का वातावरण शुद्ध और खुला हो। बाग-बगीचे, तालाब या नदी किनारे पर व्यायाम करना और भी लाभदायक होता है। व्यायाम करते समय गहरी श्वासें लें। व्यायाम समाप्त करने पर कुछ देर खुली हवा में टहलना चाहिए। व्यायाम की समाप्ति पर तुरंत कोई खाद्य पदार्थ खाना हितकर नहीं है। नियम समय पर नियमित व्यायाम ही शरीर को स्वस्थ बना सकता है।
व्यायाम मनुष्य के दैनिक जीवन का एक आवश्यक कार्य होना चाहिए। व्यायाम करने से शरीर पुष्ट होता है। शरीर के सभी अंग सुडौल और सुंदर बन जाते हैं। मांसपेशियां ठीक-ठीक स्थानों पर नियमित हो जाती हैं। जठराग्रि तेज हो जाती है। जो कुछ भेाजन किया जाता है, वह शीघ्र पच जाता है। शरीर में स्फूर्ति आती है। आलस्य दूर भागता है। शरीर में हलकापन रहता है। किसी प्रकार के रोग का आक्रमण नहीं होता। शरीर के सभी अंग काम करने के लिए सजग रहते हैं। मन हमेशा प्रसन्न रहता है। व्यायाम मनुष्य के लिए उसी प्रकार सुखदायक है जैसे वर्षा ऋतु में छाता पानी रोकता है। व्यायाम रोगों से हमारी रक्षा करता है।
प्रत्येक व्यक्ति को व्याायम करना चाहिए। संसार में आनंद प्रत्येक व्यक्ति चाहता है। आनंद का एकमात्र साधन है स्वास्थ्य का अच्छा रहना । यह स्वास्थ्य तभी ठीक रहा सकता है जब नियमित व्यायाम किया जाए। महर्षि चरक का कहना है कि व्यायाम करने वाले पुरुष के शरीर पर बुढ़ापा जल्दी आक्रमण नहीं कर सकता। व्यायाम की महत्ता का बखान करते हुए किसी कवि ने इसके द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों के बारे में कहा है-
रोग हरन मंगल करन, कीजै नित व्यायाम।।’
व्यायाम नियमित और निश्चित मात्रा में किया जाना चाहिए। प्राय: व्यायाम के लिए प्रात: और सांयकाल का समय उपयुक्त होता है। स्थान ऐसा हो, जहां का वातावरण शुद्ध और खुला हो। बाग-बगीचे, तालाब या नदी किनारे पर व्यायाम करना और भी लाभदायक होता है। व्यायाम करते समय गहरी श्वासें लें। व्यायाम समाप्त करने पर कुछ देर खुली हवा में टहलना चाहिए। व्यायाम की समाप्ति पर तुरंत कोई खाद्य पदार्थ खाना हितकर नहीं है। नियम समय पर नियमित व्यायाम ही शरीर को स्वस्थ बना सकता है।
व्यायाम मनुष्य के दैनिक जीवन का एक आवश्यक कार्य होना चाहिए। व्यायाम करने से शरीर पुष्ट होता है। शरीर के सभी अंग सुडौल और सुंदर बन जाते हैं। मांसपेशियां ठीक-ठीक स्थानों पर नियमित हो जाती हैं। जठराग्रि तेज हो जाती है। जो कुछ भेाजन किया जाता है, वह शीघ्र पच जाता है। शरीर में स्फूर्ति आती है। आलस्य दूर भागता है। शरीर में हलकापन रहता है। किसी प्रकार के रोग का आक्रमण नहीं होता। शरीर के सभी अंग काम करने के लिए सजग रहते हैं। मन हमेशा प्रसन्न रहता है। व्यायाम मनुष्य के लिए उसी प्रकार सुखदायक है जैसे वर्षा ऋतु में छाता पानी रोकता है। व्यायाम रोगों से हमारी रक्षा करता है।
प्रत्येक व्यक्ति को व्याायम करना चाहिए। संसार में आनंद प्रत्येक व्यक्ति चाहता है। आनंद का एकमात्र साधन है स्वास्थ्य का अच्छा रहना । यह स्वास्थ्य तभी ठीक रहा सकता है जब नियमित व्यायाम किया जाए। महर्षि चरक का कहना है कि व्यायाम करने वाले पुरुष के शरीर पर बुढ़ापा जल्दी आक्रमण नहीं कर सकता। व्यायाम की महत्ता का बखान करते हुए किसी कवि ने इसके द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों के बारे में कहा है-
रोग हरन मंगल करन, कीजै नित व्यायाम।।’
salonigautam6:
nice
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प्रस्तावना : मानव-जीवन में स्वास्थ्य का अत्यधिक महत्व है। यदि मनुष्य का शरीर स्वस्थ है तो वह जीवन में अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है। यह मानव-जीवन की सर्वश्रेष्ठ पूँजी है। ‘एक तन्दुरूस्ती हजार नियामत’ के अनुसार स्वास्थ्य वह सम्पदा है जिसके द्वारा मनुष्य धर्म¸अर्थ¸काम और मोक्ष चारों पुरूषार्थों को प्राप्त कर सकता है-‘धर्मार्थ-काम-मोक्षाणाम¸आरोग्य मूलकारणम्।’ अंग्रेजी में भी कहावत है-‘health is wealth.’ अर्थात् स्वास्थ्य ही धन है। प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य की महत्ता पर बल दिया जाता रहा है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन¸ चिन्तामुक्त जीवन¸ उचित विश्राम और पर्याप्त व्यायाम की आवश्यकता होती है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्यायाम सर्वोत्तम साधन है।
व्यायाम का अर्थ : मन को प्रफुल्लित रखने एवं तन को सशक्त एवं स्फूर्तिमय बनाने के लिए हम कुछ नियमों के अनुसार जो शारीरिक गति करते हैं उसे ही व्यायाम कहते हैं। केवल दण्ड-बैठक¸ कुश्ती¸ आसन आदि ही व्यायाम नहीं हैं वरन् शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन भी जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि होती है व्यायाम कहा जाता है। टहलना¸भागना¸कूदना¸कबड्डी¸क्रिकेट आदि खेलना¸ दण्ड-बैठक लगाना¸शरीर का संचालन करके योगासन करना आदि व्यायाम के अन्तर्गत आते हैं। तैरना¸मुग्दर घुमाना¸वजन उठाना¸पी0 टी0 आदि भी व्यायाम के ही रूप हैं।
व्यायाम के रूप : मन की शक्ति के विकास के लिए चिन्तन-मनन करना आदि मानसिक व्यायाम कहे जाते हैं। शारीरिक बल व स्फूर्ति बढ़ाने को शारीरिक व्यायाम कहा जाता है। प्रधान रूप से व्यायाम शरीर को पुष्ट करने के लिए किया जाता है।
शारीरिक व्यायाम को दो भागों में रखा गया है- (1) खेल-कूद तथा (2) नियमित व्यायाम। खेल-कूद में रस्साकशी¸कूदना¸दौड़ना¸कबड्डी¸तैरना आदि व्यायाम आते हैं। इनके करने से रक्त का तेजी से संचार होता है और प्राण-वायु की वृद्धि होती है। आधुनिक खेलों में हॉकी¸फुटब़ॉल¸ वॉलीबाल¸ क्रिकेट आदि खेल व्यायाम के रूप हैं। खेल-कूद सभी स्थानों पर सभी लोग सुविधापूर्वक नहीं कर पाते इसलिए वे शरीर को पुष्ट रखने के लिए कुश्ती¸मुग्दर घुमाना¸योगासन आदि अन्य नियमित व्यायाम करते हैं। व्यायाम केवल पुरूषों के लिए ही आवश्यक नहीं है अपितु स्त्रियों को भी व्यायाम करना चाहिए। रस्सी कूदना¸ नृत्य करना आदि स्त्रियों के लिए परम उपयोगी व्यायाम है।
व्यायाम की मात्रा : व्यायाम कितना किया जाये यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। बालक¸युवा¸स्त्री¸वृद्ध आदि के लिए व्यायाम की अलग-अलग मात्रा है। कुछ के लिए हल्के व्यायाम कुछ के लिए प्रातः भ्रमण तथा कुछ के लिए अन्य प्रकार के खेल व्यायाम का कार्य करते हैं। आयु¸शक्ति¸लिंग एवं स्थान के भेद से व्यायाम की मात्रा में अन्तर हो जाता है।
व्यायाम के लिए आवश्यक बातें : व्यायाम का उचित समय प्रातःकाल है। प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खायें शरीर पर तेल लगाकर व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम शुद्ध वायु में लाभाकारी होता है।व्यायाम प्रत्यक अंग का होना चाहिए।शरीर के कुछ अंग जोर पड़ते ही पुष्ट होते प्रतीत होते हैं। व्यायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। व्यायाम के विभिन्न रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक अवस्था में लाभदायक नहीं हो सकते अतः उपयुक्त समय में उचित मात्रा में अपने लिए उपयुक्त व्यायाम का चुनाव करना चाहिए। व्यायाम करते समय नाक से साँस लेना चाहिए और व्यायाम करने के बाद दूध आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन आवश्यकता व सामर्थ्य के अनुसार अवश्य करना चाहिए।
व्यायाम से लाभ : व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है बुद्धि और तेज बढ़ता है। अंग-प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है। मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं। पाचन-शक्ति ठीक रहती है। शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है। व्यायाम के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है और व्यायाम की थकावट भी अनुभव नहीं होती। शरीर स्वस्थ होने से सभी इन्द्रियाँ सुचारू रूप से काम करती हैं। व्यायाम से शरीर नीरोग¸मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है।
शरीर और मन के स्वस्थ रहने से बुद्धि भी ठीक कार्य करती है। अंग्रेजी में कहावत है- ‘Sound mind exists in a sound body’ अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। मन प्रसन्न और बुद्धि सक्रिय रहने से मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। वह परिश्रमी और स्वावलम्बी हो जाता है। व्यायाम का अभ्यास करने के लिए सूर्योदय से पूर्व सोकर उठने की आदत पड़ जाती है। इससे सारे दिन शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।
व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं परन्तु इसमें असावधानी करने के कारण हानियाँ भी हो सकती हैं। व्ययाम का चुनाव करते समय¸ आयु एवं शारीरिक शक्ति का ध्यान अवश्य रखन
व्यायाम का अर्थ : मन को प्रफुल्लित रखने एवं तन को सशक्त एवं स्फूर्तिमय बनाने के लिए हम कुछ नियमों के अनुसार जो शारीरिक गति करते हैं उसे ही व्यायाम कहते हैं। केवल दण्ड-बैठक¸ कुश्ती¸ आसन आदि ही व्यायाम नहीं हैं वरन् शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन भी जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि होती है व्यायाम कहा जाता है। टहलना¸भागना¸कूदना¸कबड्डी¸क्रिकेट आदि खेलना¸ दण्ड-बैठक लगाना¸शरीर का संचालन करके योगासन करना आदि व्यायाम के अन्तर्गत आते हैं। तैरना¸मुग्दर घुमाना¸वजन उठाना¸पी0 टी0 आदि भी व्यायाम के ही रूप हैं।
व्यायाम के रूप : मन की शक्ति के विकास के लिए चिन्तन-मनन करना आदि मानसिक व्यायाम कहे जाते हैं। शारीरिक बल व स्फूर्ति बढ़ाने को शारीरिक व्यायाम कहा जाता है। प्रधान रूप से व्यायाम शरीर को पुष्ट करने के लिए किया जाता है।
शारीरिक व्यायाम को दो भागों में रखा गया है- (1) खेल-कूद तथा (2) नियमित व्यायाम। खेल-कूद में रस्साकशी¸कूदना¸दौड़ना¸कबड्डी¸तैरना आदि व्यायाम आते हैं। इनके करने से रक्त का तेजी से संचार होता है और प्राण-वायु की वृद्धि होती है। आधुनिक खेलों में हॉकी¸फुटब़ॉल¸ वॉलीबाल¸ क्रिकेट आदि खेल व्यायाम के रूप हैं। खेल-कूद सभी स्थानों पर सभी लोग सुविधापूर्वक नहीं कर पाते इसलिए वे शरीर को पुष्ट रखने के लिए कुश्ती¸मुग्दर घुमाना¸योगासन आदि अन्य नियमित व्यायाम करते हैं। व्यायाम केवल पुरूषों के लिए ही आवश्यक नहीं है अपितु स्त्रियों को भी व्यायाम करना चाहिए। रस्सी कूदना¸ नृत्य करना आदि स्त्रियों के लिए परम उपयोगी व्यायाम है।
व्यायाम की मात्रा : व्यायाम कितना किया जाये यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। बालक¸युवा¸स्त्री¸वृद्ध आदि के लिए व्यायाम की अलग-अलग मात्रा है। कुछ के लिए हल्के व्यायाम कुछ के लिए प्रातः भ्रमण तथा कुछ के लिए अन्य प्रकार के खेल व्यायाम का कार्य करते हैं। आयु¸शक्ति¸लिंग एवं स्थान के भेद से व्यायाम की मात्रा में अन्तर हो जाता है।
व्यायाम के लिए आवश्यक बातें : व्यायाम का उचित समय प्रातःकाल है। प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खायें शरीर पर तेल लगाकर व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम शुद्ध वायु में लाभाकारी होता है।व्यायाम प्रत्यक अंग का होना चाहिए।शरीर के कुछ अंग जोर पड़ते ही पुष्ट होते प्रतीत होते हैं। व्यायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। व्यायाम के विभिन्न रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक अवस्था में लाभदायक नहीं हो सकते अतः उपयुक्त समय में उचित मात्रा में अपने लिए उपयुक्त व्यायाम का चुनाव करना चाहिए। व्यायाम करते समय नाक से साँस लेना चाहिए और व्यायाम करने के बाद दूध आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन आवश्यकता व सामर्थ्य के अनुसार अवश्य करना चाहिए।
व्यायाम से लाभ : व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है बुद्धि और तेज बढ़ता है। अंग-प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है। मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं। पाचन-शक्ति ठीक रहती है। शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है। व्यायाम के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है और व्यायाम की थकावट भी अनुभव नहीं होती। शरीर स्वस्थ होने से सभी इन्द्रियाँ सुचारू रूप से काम करती हैं। व्यायाम से शरीर नीरोग¸मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है।
शरीर और मन के स्वस्थ रहने से बुद्धि भी ठीक कार्य करती है। अंग्रेजी में कहावत है- ‘Sound mind exists in a sound body’ अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। मन प्रसन्न और बुद्धि सक्रिय रहने से मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। वह परिश्रमी और स्वावलम्बी हो जाता है। व्यायाम का अभ्यास करने के लिए सूर्योदय से पूर्व सोकर उठने की आदत पड़ जाती है। इससे सारे दिन शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।
व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं परन्तु इसमें असावधानी करने के कारण हानियाँ भी हो सकती हैं। व्ययाम का चुनाव करते समय¸ आयु एवं शारीरिक शक्ति का ध्यान अवश्य रखन
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