Hindi, asked by amritnoor, 1 year ago

please write an essay on chatra and shikshak in hindi

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Answered by hasanansari
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शिक्षण के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक आपके छात्रों के साथ संबंध बना रहा है। शिक्षक-बच्चे के रिश्ते प्रभावित होते हैं कि बच्चे को कैसे विकसित होता है रिश्ता स्कूल समायोजन परिणामों की एक विस्तृत श्रृंखला, पसंद स्कूल, काम की आदतों, सामाजिक कौशल, व्यवहार, और शैक्षिक प्रदर्शन से संबंधित कर सकते हैं।

एक शिक्षक को पूरी तरह से भाग लेने के लिए सभी छात्रों के लिए तरीके तैयार करने की आवश्यकता है, यहां तक ​​कि शर्मीली या चुप वाले भी। इसके अलावा ध्रुवीकरण से बचने की जरूरत है, किसी विषय के सभी पहलुओं का पता लगाएं। शिक्षकों को उनके विचारों में छात्रों का समर्थन करने की जरूरत है और अगर उनकी ज़िम्मेदारी है तो उनकी राय बदलने के लिए प्रोत्साहित करें। आखिरकार उन्हें चर्चा के उपकरण सिखाने की ज़रूरत है।

शिक्षक के रूप में आपको छात्रों को अपने स्वयं के सीखने के लिए ज़िम्मेदारी लेने और छात्र की सुविधा के रूप में कार्य करने की अनुमति देने की आवश्यकता है, न कि सिर्फ अपने ज्ञान पर व्याख्यान करें। एक शिक्षक के रूप में आपकी भूमिका छात्रों के साथ काम करना है, न कि छात्रों को क्या करना है यह बताने के लिए।

छात्रों के साथ उनके रिश्ते में शिक्षकों को सशक्त होना चाहिए और उनकी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। हालांकि अपने छात्रों के शिक्षकों से सम्मान हासिल करना आवश्यक है, लेकिन छात्रों का भी सम्मान करना चाहिए। वे तानाशाह में सुविधा देने की भूमिका नहीं ले सकते। अपने छात्रों के प्रति सम्मान करने की शिक्षक की ज़िम्मेदारी है। आप सम्मान के साथ एक सुरक्षित संबंध बना सकते हैं और एक साथ देखभाल कर सकते हैं। छात्रों को आप का सम्मान किए बिना या प्राधिकरण के आंकड़े के रूप में देख सकते हैं। यदि आपके छात्र आपके विद्यार्थियों का सम्मान नहीं करते हैं, तो वे आपका सम्मान नहीं करेंगे।

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Answered by seemakakanda
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Explanation:

  घर-प्रारंभिक पाठशाला, माता-पिता प्रथम शिक्षक – पूरा जीवन एक विदायक है | हर व्यक्ति विदार्थी भी है और शिक्षक भी | कोई भी मनुष्य किसी से कुछ सिख सकता है | बच्चे के लिए सबसे पहली पाठशाला होती है – घर | माता-पिता ही उसके प्रथम शिक्षक होते हैं | वे उसे ईमानदारी, सच्चाई या बेईमानी का मनचाहा पथ पढ़ा सकते हैं | वास्तव में माता-पिता जैसा आचरण करते हैं बच्चा उसी को सही मानकर ग्रेहन कर लेता है |

            विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता – विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता के समान होते हैं | वे बच्चों को अपनी प्रिय संतान के समान मानते हैं | उन पर बच्चों को संस्कारित करने का दायित्व होता है | इसलिए वे अच्छे कुंभकार के समान बच्चों की बुरी आदतों पर चोट करते हैं तथा अच्छी बातों की प्रशंसा करते हैं | शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों की बुरी आदतों का समर्थन न करें, अपितु उन्हें उचित मार्ग पर लाने का प्रयास करें |

            शिक्षक का दायित्व, पढ़ाना, दिशा-निर्देशन, सत्य्कार्यों की प्रेरणा – शिक्षकों का दायित्व केवल पुस्तकें पढ़ाना नहीं है | अपना विषय पढ़ाना उनका प्रथम धर्म है | उन्हें चाहिए कि वे अपने विषय को सरस और सरल ढंग से बच्चों को पढाएँ | उनका दूसरा दय्तिव है – बच्चों को सही दिशा बताना | अच्छे-बुरे की पहचान करना | तीसरा दायित्व है – बच्चों को शुभ कर्मों की प्रेरणा देना |

छात्र का दायित्व, परस्पर संबंद – शिक्षा-प्राप्ति का कर्म छात्रों की सदभावना के बिना पूरा नहीं हो सकता | जब तक छात्र अपने शिक्षक को पूरा सम्मान नहीं देता, तब तक वह विद्या ग्रहण नहीं कर सकता | कहा भी गया है – ‘श्रद्धावान लभते ज्ञ्नाम |’ श्रद्धावान को ही विद्या प्राप्त होती है | अपने शिक्षक पर संपूर्ण विश्वास रखने वाले छात्र ही शिक्षक की वाणी को ह्रदय में उतार सकते हैं | अच्छा छात्र हमेशा यही कहता है –

दोनों परस्पर अपने-अपने दायित्वों की समझें – विद्या-प्राप्ति का कार्य शिक्षक और छात्र दोनों के आपसी तालमेल पर निर्भर है | कबीर कहते है –

सतगुरु बपुरा क्या करै, जे सिष महि चुक

यदि छात्र में दोष हो तो सतगुरु चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता | इसके विपरीत यदि गुरु अयोग्य हो तो उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है 

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