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मध्यकालीन युग के मुकाबले पौराणिक युग में महिलाओं की सामाजिक स्थिति बेहतर थी। बदलते वक़्त में समाज के अन्दर काफी कुरीतियों ने जन्म लिया जो महिलाओं की दशा ख़राब करने में अहम भागीदार थी। मध्यकालीन युग में भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज बन गया था और औरतों को मात्र पुरुषों का गुलाम समझा जाने लगा था। महिलाओं से सिर्फ यही अपेक्षा की जाती थी कि वे पुरुषों की संतुष्टि का ध्यान रखें। परिणामस्वरूप धीरे धीरे महिलाओं की छवि गिरती चली गयी और पुरुष उन पर अपनी इच्छा मनवाने का दबाव बनाने लगे थे। उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रखा जाता था। हालाँकि आज 21वीं सदी में भी हमें महिलाओं पर होते ऐसे अत्याचारों की खबरें सुनने को मिल जाती है।
पहले ऐसा देखा जाता था की अगर घर में बेटी का जन्म होता तो वहां मातम छा जाता था। पर वहीँ अगर बेटे का जन्म होता था तो परिवार के लोग ख़ुशी से झूमने लगते थे। यह पुरुष प्रधान समाज की ही सोच थी जिसमें बेटे से अपेक्षा की जाती थी की वह परिवार के लिए पैसा कमाएगा, समाज में उनका नाम ऊँचा करेगा वही बेटी के जन्म लेते ही माँ को मनहूस माना जाता था। बेटी का जन्म परिवार के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं था। नए समय के आगमन के साथ ही लोगों की सोच में भी बदलाव होने लगा। समाज में होते सकारात्मक परिवर्तन से महिलाओं की दशा भी सुधरने लगी।