Hindi, asked by linelfernandes3, 1 day ago

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Answered by Bikash5574
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3.

In short

नागरिक होने पर गर्व हमें तब ज्यादा होगा जब हम जीवन में संस्कारों को महत्व देंगे और संस्कार, शिष्टाचार तथा नैतिक मूल्यों को समझेंगे। हमें अच्छा नागरिक बन देश की तरक्की में योगदान देना चाहिए। ... पूरा विश्व हमारे देश के सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों का आदर करता है। भारत हमारी मातृभूमि है और हमें इसे प्यार करना चाहिए

In long

व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है। एक जिम्मेदार व्यक्ति के लिए समाज और राष्ट्र के प्रति भी जिम्मेदारी होती है। अगर इसका निर्वाह नहीं किया जाए तो उन्नत, सुसंस्कृत एवं आदर्श समाज या देश की कल्पना संभव नहीं है। एक अच्छे समाज का निर्माण करने के लिए मेरा मानना है कि अपने पारिवारिक दायित्वों के साथ देश और समाज के प्रति दायित्वों को निर्वाह भी पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। एक समाज, समुदाय या देश के नागरिक होने के नाते कुछ दायित्वों का पालन व्यक्तिगत रूप से करनी चाहिए। ये भारत के नागरिकों के लिए आवश्यक है कि वो वास्तविक अर्थो में आत्मनिर्भर बनें। ये देश के विकास के लिए बहुत आवश्यक है, यह तभी संभव हो सकता है, जब देश में अनुशासित, समय के पाबंद, कर्तव्यपरायण और ईमानदार नागरिक हों। हमें जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए। परिवार एवं आसपास के लोगों से मेलजोल और समन्वय के साथ रहना चाहिए। इससे परिवार और समाज में शांति, आपसी प्रेम और परस्पर विश्वास की रसधार बहेगी। यह तो सामाजिक नजरिया है। अब आर्थिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी की बात करते हैं।

हमारा देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। भारत विश्व की उभरती आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहा है। यह देश के नए नजरिये, उदारवादी अर्थनीति, उद्यमशीलता के अलावा लोगों के समन्वित प्रयास व उत्साह का नतीजा है। भारत में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ रहा है। देश इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवा-सुविधाओं के मामले में आगे बढ़ रहा है। जरा सोचिए, यह सबकुछ कहां से हो रहा है। यह देश के नागरिकों के टैक्स के पैसे से ही तो हो रहा है। कहते हैं कि भारत में बेशुमार कालाधन है। लोगों ने बिना टैक्स दिए बेशुमार दौलत बना ली है। जरा सोचिए लोग सच्चे मन से अपना पूरा-पूरा टैक्स चुकाएं तो देश कहां से कहां चला जाएगा। और टैक्स देने में और मुट्ठी सख्त कर लें तो विकास के बदले देश अवनति की तरफ बढ़ जाएगा। टैक्स के ही पैसे सड़कें बनती हैं। नहर निकाली जाती हैं। स्कूल-कालेज, अस्पताल बनते हैं। सड़क, मोहल्ले, कालोनी व बस्ती रात में बिजली से जगमगाती है।

बच्चों, मैं यह बताना चाहता हूं कि तमाम फर्ज की तरह हमरा देश-प्रदेश के प्रति यह भी फर्ज है कि हम पूरी ईमानदारी से टैक्स दें। अपने परिवार के लोगों को बताएं कि उन्हें आयकर, उत्पाद कर, सेवा कर, वाणिज्य कर आदि कर समय से अदा करें। टैक्स की चोरी नहीं करें। इसी पैसे देश तरक्की करता है और करोड़ों लोगों को फायदा होता है।

आगे बढ़ने के लिए दायित्व समझना जरूरी

संसार में हर प्राणी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। सूर्य, चंद्र, सितारे सब अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं। फिर हमें भी अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। हमें अपने दायित्व को समझना चाहिए। अपने राष्ट्र के प्रति भी हमारे कुछ दायित्व है। हमें सिर्फ अपने निजी उद्देश्य पूर्ति हेतु कार्य नहीं करने चाहिए। उससे बढ़कर भी हमें कुछ करना होगा। आज की युवा पीढ़ी निजी जीवन के प्रति चिंतित। वे अपना जीवन मौज-मस्ती व विलासितापूर्ण तरीके से जीना चाहती है। नौकरी भी वह इसी तरह की चाहती है। परिवार, समाज एवं देश के प्रति उदासीनता का भाव है। यह बेहद विषैला विचार है। कहावत सुनी होगी, अपने लिए जिए तो क्या जिए। अपना पेट तो हर जानवर पाल लेता है। फिर पशु और मानव में फर्क क्या? मानव वहीं है जो दूसरे का उपकार करे। दूसरों की सहायता करें। माता-पिता भगवान के दूसरे रूप होते हैं, उनकी सेवा करें। परिवार के बड़े सदस्यों को प्रेम व सम्मान दें और छोटे के प्रति स्नेह रखें। उनके लिए आर्थिक व मानसिक रूप से संबल बनने का प्रयास करें। जब एक परिवार व समाज आपस में अच्छे रिश्ते से गुंथा व जुड़ा रहेगा और तरक्की करेगा तो देश भी आगे बढ़ेगा। एक-दूसरे का पैर खींचना शुरू करेगा तो पतन की तरफ बढ़ता चला जाएगा। इसका अंतिम पड़ाव विनाश है।

परिवार से आगे बढ़कर व्यापक फलक पर सोचें कि हमारे दायित्व क्या हैं? हमें देश के जिम्मेदार नागरिक के तौर पर क्या करना चाहिए? इसका जबाव खोजना कोई पहेली नहीं है। संविधान इस प्रश्न का जबाव देता है। संविधान के भाग भाग चार में देश के नागरिकों के लिए कर्तव्य बताए गए हैं। इसमें बताया गया है कि हम राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र गान, राष्ट्रीय चिह्न का सम्मान करें। राष्ट्रीय एकता-अखंडता की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करें। देश की तरक्की में अपना योगदान करें। राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान नहीं पहुंचाएं। यही नहीं, इसमें अभिभावकों को यह भी बताया गया है कि वह अपने 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कोई काम में न लगाएं, बल्कि उन्हें पढ़ाए-लिखाएं और योग्य बनाएं।

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