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आंखें खोलकर जरा देख तो सही
तेरा देवता देवालय में नहीं है।
जहां मजदूर पत्थर तोड़ कर रास्ता तैयार कर रहें है
तेरा देवता वहीं चला गया है।
वे धूप बरसात में एक समान तपते झुलसते है
उनके दोनो हाथ मिट्टी से सने है
उनकी तरह सुन्दर परिधान त्यागकर मिट्टी भरे रास्तो से जा।
तेरा देवता देवालय में नहीं है।
भजन पूजन साधन को किनारें रख दे।
मुक्ति मुक्ति अरे कहां है
कहां मिलेगी मुक्ति
अपने सृष्टि बंध से प्रभु स्वयं ंबधे है।
ध्यान पूजा को किनारे रख दे
फूल की डाली को छोड़ दे
वस्त्रों को फटने दे धूल धूसरित होने दे
उनके साथ काम करते हुए पसीना बहनेे दे।
प्रश्न 1 आखें खोलने से क्या अभिप्राय है
आंखे खोलने का अभिप्राय वैचारिक जागृति से है कि भगवान पूजा स्थान पर नहीं बल्कि कर्म करने में है। यहां कर्म का महत्व बताया गया है।
2 कवि किस आडम्बर को त्यागने के लिये कह रहा है
भजन पूजन साधन ध्यान पूजा और भगवान को फूल अर्पित करना ये सब आडम्बर है कवि इनको त्यागने के लिये कह रहा है।
3 फूल की डाली छोड़ने से कवि का क्या अभिप्राय है
फूल की डाली से अभिप्राय आडम्बरों से है कवि का तात्पर्य ये है कि कर्म को छोड़कर आडम्बर करने से इच्छित फल (मुक्ति) कभी नहीं मिल सकती।
4 कवि के इस कथन का क्या अभिप्राय है कि तेरा देवता देवालय में नहीं है।
कवि का आशय है कि वैचारिक जागृति केे अभाव में कर्म को छोड़कर व्यक्ति आडम्बरों पर ध्यान दे रहा है यहां देवालय से आशय भटकाव या कर्म से ध्यान हटने से है।