Hindi, asked by devil230107, 9 months ago

pls solve the questions given down from this passage

व्यक्ति और समाज दोनों की प्रगति में साहित्य का विशेष हाथ होता है| जिस जाति का साहित्य जितना ही समृद्ध होगा, वह जाति उतनी ही शिष्ट और सुसंस्कृत होगी| इतना ही नहीं साहित्य वह दर्पण है, जिसमें जाति का चरित्र और उसकी संपन्नता प्रतिबिंबित होती है| साहित्य में जीवन के विभिन्न पक्षों को व्यवहारिक रूप से प्रभावित करने की क्षमता है| साहित्य से समाज का विकास होता है, परंतु यह भी सत्य है कि समाज ही साहित्य का विकास करता है | अपने ही देश और जाति का साहित्य जीवन के विकास में सहायक होता है| ज्ञान को बढाने के लिए दूसरे देशों के साहित्य का अध्ययन करना उपयोगी हो सकता है, पर अपना साहित्य माँ की तरह पालन-पोषण और विकास करने वाला होता है | अतः अपने साहित्य की माता तुल्य सेवा होनी चाहिए | ज्ञानराशिके संचित कोष का नाम साहित्य है| कोई भी भाषा चाहे कितनी भी विकसित क्यों न हो,
यदि उसका अपना साहित्य नहीं है तो वह ‘रूपवती भिखारिन’ के समान है, और साहित्य का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है| कारण यह है कि साहित्य मानव के ज्ञान का भंडार है| अपने मूल रूप से मानव जिन विचारों और भावों को परंपरा से संचित करता आया है, वे ही भाषा में लिपिबद्ध होकर साहित्य के रूप में संचित होने लगे हैं |
(1) साहित्य समाज का दर्पण है कैसे ?
(2) ‘रूपवती भिखारिन’ किसे और क्यों कहा जा रहा है? स्पष्ट करें

Answers

Answered by rockstar366
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1 जिस जाति का साहित्य जितना ही समृद्ध होगा, वह जाति उतनी ही शिष्ट और सुसंस्कृत होगी| इतना ही नहीं साहित्य वह दर्पण है, जिसमें जाति का चरित्र और उसकी संपन्नता प्रतिबिंबित होती है

2यदि उसका अपना साहित्य नहीं है तो वह ‘रूपवती भिखारिन’ के समान है, और साहित्य का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है| कारण यह है कि साहित्य मानव के ज्ञान का भंडार है| अपने मूल रूप से मानव जिन विचारों और भावों को परंपरा से संचित करता आया है, वे ही भाषा में लिपिबद्ध होकर साहित्य के रूप में संचित होने लगे

aap isse apni language mein bna skte hai............

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