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1. शब्दालंकार
जो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार कहलाते हैं। यानि किसी काव्य में कोई विशेष शब्द रखने से सौन्दर्य आए और कोई पर्यायवाची शब्द रखने से लुप्त हो जाये तो यह शब्दालंकार कहलाता है।
शब्दालंकार के भेद:
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
श्लेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार
जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। जैसे :
चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में ।
ऊपर दिये गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की ‘च’ वर्ण की आवृति हो रही है और आवृति हों से वाक्य का सौन्दर्य बढ़ रहा है। अतः यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण होगा।
अनुप्रास अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – अनुप्रास अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
2. यमक अलंकार
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। दो बार प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ अलग हो सकता है । जैसे:
काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले ‘घटा’ शब्द ‘वर्षाकाल’ में उड़ने वाली ‘मेघमाला’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार ‘घटा’ का अर्थ है ‘कम हुआ’। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
यमक अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – यमक अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
3. श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार ऊपर दिये गए दोनों अलंकारों से भिन्न है । श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ होते हैं। जैसे:
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।
पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतर्गत आएगा।
श्लेष अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – श्लेष अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
2. अर्थालंकार
जब किसी वाक्य का सौन्दर्य उसके अर्थ पर आधारित होता है तब यह अर्थालंकार के अंतर्गत आता है ।
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के मुख्यतः पाँच भेद होते हैं :
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
अतिशयोक्ति अलंकार
मानवीकरण अलंकार
1. उपमा अलंकार
उप का अर्थ है समीप से और पा का अर्थ है तोलना या देखना । अतः जब दो भिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है । जैसे:
कर कमल-सा कोमल है ।
यहाँ पैरों को कमल के समान कोमल बताया गया है । अतः यहाँ उपमा अलंकार होगा।
उपमा के अंग :
उपमेय : जिस वस्तु की समानता किसी दूसरे पदार्थ से दिखलायो जाये वह उपमेय होते है । जैसे: कर कमल सा कोमल है । इस उदाहरण में कर उपमेय है ।
उपमान : उपमेय को जिसके समान बताया जाये उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है।
उपमा अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – उपमा अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
2. रूपक अलंकार
जब उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद दिखाया जाए तब यह रूपक अलंकार कहलाता है। जैसे:
“मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों”
ऊपर दिए गए उदाहरण में चन्द्रमा एवं खिलोने में समानता न दिखाकर चाँद को ही खिलौना बोल दिया गया है। अतएव यह रूपक अलंकार होगा।
चरण-कमल बंदौं हरिराई।
ऊपर दिए गए गए वाक्य में चरणों को कमल के सामान न दिखाकर चरणों को ही कमल बोल दिया गया है। अतः यह रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
रूपक अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – रूपक अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान के होने की संभावना का वर्णन हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु,मेरे जानते,मनहु,मानो, निश्चय, ईव आदि आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे:
मुख मानो चन्द्रमा है।
ऊपर दिए गए उदाहरण में मुख के चन्द्रमा होने की संभावना का वर्णन हो रहा है। उक्त वाक्य में मानो भी प्रयोग किया गया है अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – उत्प्रेक्षा अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा
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