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भरतनाट्यम को नृत्य का सबसे पुराना रूप माना जाता है और यह शैली भारत में शास्त्रीय नृत्य की अन्य सभी शैलियो की माँ है। शास्त्रीय भारतीय नृत्य भरतनाट्यम की उत्पत्ति दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के मंदिरो की नर्तकियों की कला से हुई। भरतनाट्यम पारंपरिक सादिर और अभिव्यक्ति, संगीत, हरा और नृत्य के संयोजन से नृत्य का रूप है।
१. शांता राव भारत की उल्लेखनीय नृत्यांगना थीं। वह भरतनाट्यम की प्रतिपादक थीं और उन्होंने कथकली और कुचिपुड़ी का भी अध्ययन किया। वह 1971 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, 1970 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा दिए गए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1993-94 के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया।
२. पद्मा सुब्रह्मण्यम (जन्म 4 फरवरी 1943, मद्रास में), एक भारतीय शास्त्रीय भरतनाट्यम नर्तक हैं। वह एक रिसर्च स्कॉलर, कोरियोग्राफर, म्यूजिक कंपोजर, गायिका, शिक्षिका, इंडोलॉजिस्ट और लेखिका भी हैं। वह भारत के साथ-साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों द्वारा उनके सम्मान में कई फिल्में और वृत्तचित्र बनाए गए हैं। उन्हें डांस फॉर्म के संस्थापक और भरत नृत्यम के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वह कांची के परमाचार्य की भक्त हैं।
३. रुक्मणि देवी अरुंडलेभारत की जानी मानी भरतनाट्यम नृत्यांगना थी । वे दर्शनशास्त्री भी थी । भारतीय नृत्य कला को उन्होने एक नयी पहचान दी । उन्हे नृत्य की एक विधा 'साधिर' को पुन: स्थापित करने के लिए जाना जाता है
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